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________________ विपरीत और असत्य है, और " ऐसा सूत्रका प्रमाण है" ऐसे जो लिखा है सो भी जैसे मच्छीमारके पास मछलियां फसाने वास्ते जाल, होताहे तैसे भोले लोगों को कुमार्गमें डालने का यह जाल है क्योंकि सूत्रों में तो चारज्ञानी, चौदपूर्वी, यथाख्यातचारित्री, एका'दशमगुणठाणेवाले को भी अनते भव होवे ऐसे लिखा है तो सम्यग् दृष्टिको होवे इसमें क्या आश्चर्य है ? तथा सम्यक्त्त्व प्राप्तिके पीछे उत्कृष्ट अर्द्धपुद्गल परावर्त्त संसार रहता है और सो अनंताकाल होने से तिसमें अनंते भव हो सकते हैं * ॥ . . .. (२०) जेठमल लिखता है कि “एक वक्त राज्याभिषेक के समय प्रतिमा पूजते हैं परंतु पीछे भव पर्यत प्रतिमा.नहीं पूजते हैं" उत्तर-सुर्याभने पूर्व और पीछे हितकारी क्या है ? ऐसे पूछा तथा पूर्व और पीछे करने योग्य क्या है? ऐसे भी पूछा,जिसके जवाबमें तिस के सामानिक देवताने जिनप्रतिमाकी पूजा पूर्व और पीछे.. हित: कारी और करने योग्य कही जोपाठ श्रीरायपसेणी सूत्र में प्रसिद्ध है। इसवास्ते सुर्याभ देवताने जिनप्रतिमा की पूजा नित्यकरणी तथा सदा हितकारी जानके हमेशां करी ऐसे सिद्ध होता है। . श्रीजीवाभिगम सूत्र में लिखा है यत - सम्मदिहिस्स अंतरं सातियस्स अपज्जवसियस्स णस्थि अंतरं सातियस्स सपज्जवसियस्त जहण्णेणं अतो मुहत्तं उक्कोसेणं अणंत कालं जाव अवठ्ठपोग्नलपरियह देसूणं ॥ " श्री राय पत्तणी सूत्र का पाठ यह है:• "तएंणं तस्स सरियाभस्स पंचविहाए पज्जत्तिए पज्जत्तिभावं गयस्ससमाणस्सईमयारूवेअभस्थिएचिंतिए पथिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था किं मे पुव्विं करणिज्ज किं मे पच्छा करणिज्जं कि मे
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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