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________________ (१५); ममदोमालामा श्रीनंदिसूत्रमें भी ऐसे ही कहा है, और सुर्याभने भी बड़ा लाभ चितवन करके ही प्रभुके पास नाटक किया है। (३) “पेचा" शब्दका अर्थ परभव है ऐसा जेठमलने सिद्ध किया है सो ठीक है इस वास्ते इसमें कोई विवाद नहीं है। (४) सर्याभने अपने सेवक देवता को कहा यह बात जेठमल ने, अधूरी लिखी है, इसवास्ते श्रीरायपसेणी सूत्रानुसार यहां विस्तार से लिखते हैं। सुर्याभ देवताने अपने सेवक देवता को बुला कर कहा कि हे देवानु प्रिय ! तुम आमलकल्पा नगरीमें अंबसाल वनमें जहां श्री महावीर भगवंत समवसरे हैं तहां जाओ जाके भगवंत को वंदना नमस्कार करो, तुमारा नाम गोत्र कह के सुनाओ, पीछे भगवंत के समीप एक योजन प्रमाण जगह पवन करके तृण, पत्र, काष्ठ, कंडे, कांकरे (रोड़े ) और अशुचि वगैरह से रहित (साफ) करो, करके गंधोदक की वृष्टि करो, जिस से सर्व रज शांत होजाचे अर्थात् बैठ जावे, उडे. नहीं ; पीछे जल थल के पैदा भये फूलों की वृष्टि, दंडी नीचे और पांखडी ऊपर रहे तैसे जानु (गोड़े)प्रमाण करो करके अनेक प्रकारकी सुगंधी वस्तुओं से धूप करो यावत् देवताओंके अभिगमन करने योग्य (आने लायक) करो॥ - सुर्याभ देवताका ऐसा आदेश अंगीकार करके आभियोगिक देवता वैक्रियसमुद्घात करे, करके भगवंतके समीप आवे, आयके वंदना नमस्कार करके कहे कि हम सुर्याभ के सेवक हैं और तिसके. आदेशसे देवके चैत्यकी तरह आपकी पर्युपासना करेंगे ऐसे वचन सुनके भगवंत ने कहा यतः श्रीराजप्रश्नीयसूत्रेपोराणमेयं देवा जीयमेयं देवा कियमेयं देवा
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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