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________________ सामि एयं मे पेच्चा हियाएं सुहाए खमाए निस्सेसाए अणुगामियत्ताए भविस्सइ॥ .. अर्थ--निश्चय तिसका महाफल है, किसका सो कहते हैं, तथारूप अरिहंत भगवंत के नाम गोत्रके भी सुनने का परंतु तिसका तो क्याही कहना?-जो सन्मुख जाना वंदना करनी नमस्कार करना, प्रतिपृच्छा करनी, पर्युपासनासेवा करनी, एकभी आर्य (श्रेष्ठ) धार्मिक वचन का सुनना इसका तो महाफल होवेही और विपुल अर्थकाग्रहण करना तिसके फलका तो क्याही कहना इस वास्ते में जाऊ, श्रमण भगवंत महावीरको वंदना करूं नमस्कार करू,सत्कार करूं,सन्मानकरूं,कल्याणकारी मंगलकारी देवसंबंधि चैत्य (जिन प्रतिमा) तिसकी तरह सेवाकरूं,यह मुझको परभवमें हितकारी, सुखंके वास्ते, क्षेमके वास्ते, निः श्रेयस् जो मोक्ष तिसके वास्ते,और अनुगमन करनेवाला अर्थात् परंपरासे शुभानुबंधि-भव भंव में साथ जाने वाला होगा ॥ पूर्वोक्त पाठ में देवके चैत्यकी तरह सेवा करू ऐसे कहा इस से 'स्थापना जिन और भावजिन' इन दोनों की पूजा प्रमुख का समान फल सूत्रकारने बतलाया है। जेठमल कहता है कि " वंदना वगैरह का मोटा लाभ कहा परंतु नाटक का मोटा (बड़ा)लाभ सुर्याभनेचिंतवन नहीं किया, इस बास्ते नाटक भगवंतकी आज्ञाका कर्तव्य मालुम नहीं होता है" उत्तर-जेठमलका यह लिखना असत्य है, क्योंकि नाटक करना अरिहंत भगवंत की भावपूजामें है और तिसका तो शास्त्रकारों ने अनंत फल कहा है, इसवास्ते सो जिनाज्ञाका ही कर्तव्य है, .
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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