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________________ परंतु परभव में अनंत भव रुलने रूप शिक्षाके पात्र होवोगे इसमें कुछ ही संदेह नहीं है, इसवास्ते कुछ समझो और पापके कुयेमें न डूब मरो, किंतु कुमतको त्यागके सुमतकों अंगीकार करो। : "अरिहंतका संघद्या स्त्री नहीं करती है तो प्रतिमाका संघद्या. स्त्री कैसे करे" तिसका उत्तर-प्रतिमा जो है सो स्थापनारूप है इस वास्ते तिसके स्त्री संघ में कुछभी दोष नहीं है, क्योंकि वो कोई भाव अरिहंत नहीं है किंतु अरिहंतकी प्रतिमा है, यदि जेठमल स्थापना और भाव दोनोंको एक सरीखेही मानता है तो सूत्रों में सोना; रूया, स्त्री, नपुंसकादि अनेक वस्तु लिखी हैं; और सूत्रों में जो अक्षर हैं वे सर्व सोना रूपा स्त्री. नपुंसकादि क़ी स्थापना है; इसलिये इनके वांचने से तो किसी भी ढूंढक ढूंढकनी कॉ. शील महावत रहेगा नहीं, तथा देवलोक की मूर्तियां; और नरक के चित्र, वगैरह ढूंढकों के साधु,तथा साध्वी, अपने पास रखते हैं और ढूंढकों को प्रतिबोध करन वास्ते दिखाते हैं, उन.. चित्रों में देवांगनाओं के स्वरूप, शालिभद्रका, धन्नेका तथा तिन की स्त्रियों वगैरह के चित्राम भी होते हैं ; इस वास्ते जैसे उन चित्रों में स्त्री तथा पुरुषपणे की स्थापना है तैसे ही जिनप्रतिमा भी अरिहंतकी स्थापना है, स्थापना को स्त्रीका संघट्टा होना न चाहिये ऐसे जो जेठमल और तिसके कुमति ढूंढक मानते हैं तो पूर्वोक्त कार्यों से. ढूंढकों के साधु साध्वीयों का शीलवत (ब्रह्मचर्य ) कैसे रहेगा.? सो विचार करना है। और जेठमलने लिखा है कि गौतमादिक मुनि तथा आनं। सोहनलाल, गैंडेराय, पार्वती, वगैरह का फोटो पंजाब के ढूंढिये अपने पासरखत *ससे तो . सोहनता पार्वती वगैरहके ब्रह्मचर्य का फका भी न रहा होगा !!!
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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