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________________ कि जिस के बहुत से अर्थहोते होवें तिनमें से अपने मन माना एक ही अर्थ निकाल के जहां तहां लगाना चाहते हैं परंतु ऐसे हाथ पैर मारने से खोटामत साचा होने का नहीं है। . : . तथा जेठमल और तिसके कुमति ढूंढिये कहते हैं, कि द्रोपदीने विवाहके समय नियाणेके तीव्र उदयसे पतिकी वांछासे विषयार्थ पूजा करी है " उत्तर--अरे मूढो ! यदि पतिकी वांछासे पूजा करीहोती,तो पूजा करने समय अच्छाखूबसूरत पतिमांगना चाहिये था, परंतु तिसनेसो तो मांगाहीनहीं है, उसने तो शक्रस्तवन पढ़ा है जिस में " तिन्नाणं तारयाणं" अर्थात् आपतरेहो मुझ को तारो इत्यादि पदों करके शुद्ध भावना से मोक्ष मांगा है; परंतु जैसे मिथ्यात्वी योग्य पति पाऊंगी,तो तुम आगे याग भोग करूंगी इत्यादि स्तुतिमें कहती हैं, तैसे उसने नहीं कहा है, इसवास्ते फकत अपने कुमत को स्थापन करने वास्ते ऐसी सम्यग्दृष्टिनी श्राविका के शिरखोटा कलंक चढ़ाते हो सो तुमको संसार वधानेका हेतु है; और इसतरां महासति द्रौपदीके शिर अणहोया कलंक चढ़ाने से तथा उस सम्यक्तवति श्राविकाके अवर्णवाद बोलनेसें तुम बड़ेभारी दुःख के भागा होगे, जैसे तिस महासति द्रौपदी को अति दुःख दिया, भरी सभा के बीच निर्लज्ज होके तिस की लज्जा लेने की मनसा करी, इत्यादिअनेक प्रकारका तिसके ऊपर जुलम करा जिससे कौरवों का सह कुटुंब नाश हुआ; कैयाश्चिक भी उस मूजब करनेसे अपने एक सो भाइयों के मृत्युका हेतु हुआ; पद्मोत्तर राजाने तिस को कुदृष्टिसे हरण किया जिससे आखीर तिसको तिसके शरणे जाना पड़ा और तबही वो बंधनसे मुक्त हुआ,तैसे तुमभी उस महासती के अवर्णवाद बोलने से इस भवमें तो. जैनबाह्य हुएहो, इतनाही नहीं
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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