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________________ दादक श्रावक प्रभुसे दूर बैठे परंतु प्रभुको स्पर्श करना न पाये", उत्तर-मुर्ख जेठमल इतना भी नहीं समझता कि बहुत लोगोंके समक्ष धर्म देशनाश्रवण करने को बैठना मर्यादा पूर्वक ही होता है, परंतु सो इसमें जेठमल की भूल नहीं है, क्योंकि ढूंढिये मर्यादा के बाहिर ही हैं; इसवास्ते यह नहीं कहा जा सकता है कि गौतमादिप्रभु को स्पर्श नहीं करते थे और तिनको स्पर्श करने की आज्ञाही नहीं थी क्योंकि श्रीउपासकदशांग सूत्र में आनंद श्रावकने गौतमस्वामीके चरण कमलको स्पर्श कियेका अधिकार है, और तम ढूंढिये पुरुषोंका संघट्टा भी करना वर्जते हो तो उसकाशास्त्रोक्त कारण दिखाओ? तथा तुम जो पुरुषों का संघट्टा करते हो सोत्याग दो, । तथा जेठमलने लिखा है कि "पांच अभिगम में सचित्तवस्त त्यागके जाना लिखा है" सो सत्य है, परंतु यह सचित्त वस्तु अपने शरीर के भोगकी त्यागनीकही है, पूजाकी सामग्री त्यागनी नहीं लिखी है क्योंकि श्रीनंदिसूत्र, अनुयोग द्वारसूत्र, तथा उपासकदशांग सूत्र में कहा है कि तीनलोकवासी जीव " महिय पूइय" अर्थात् फूलोंसे भगवान्की पूजा करते हैं,। जेठमल लिखता है कि "अभोगी देवकी पूजा भोगीदेवकी तरह करते हैं" उत्तर-भगवान् अभोगी थे तो क्या आहार नहीं करते थे ? पानी नहीं पीते थे ? बैठते नहीं थे ?इत्यादि कार्य करते थे,या नहीं ? करते ही थे.परंतु तिनका यह करना निर्जराका हेतु है, और दूसरे अज्ञानीयों का करना कर्म बंधनका हेतु है, तथा प्रभु जब - * ढूंढिये श्रावक, श्राविका, अपने गुरु गुरणी के चरणों कोहाथ लगाके वदना करते सोभी जेठमलकी अकल मजिव प्राज्ञा बाहिर और बेप्रकल मालूम होते हैं।
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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