________________
(१८) जिस समय द्रौपदीने जिनप्रतिमा की पूजा करी तिस समय में जिन प्रतिमाको वस्त्र युगल पहिरानेका रिवाज था सो हम मंजूर करते हैं परंतु वस्त्र पहिराने का रिवाज अन्यदर्शनियों में दिन प्रतिदिन अधिक होने से जिनप्रतिमा भी वस्त्र युक्त होगी तो पिछानमें न आवेगी ऐसे समझ के सूत प्रमुख के वस्त्र पहिराने का रिवाज बहुत वर्षो से बंद हो गया है, परंतु हाल में वस्त्र के बदले जिनप्रतिमाको सोना, चांदी हीरा, माणक प्रमुख की अंगीयां पहिराई जाती हैं, तथा जामा और कबजा - फतुइ कमीज - प्रमुख के आकार की अंगीयां होती हैं, जिन को देखके सम्यग्दृष्टि जीव जिनको कि जिनदर्शनकी प्राप्ति होती है, तिनको साक्षात् वस्त्र पहिराये ही प्रतीत होते हैं, परंतु महा मिथ्यादृष्टि ढूंढिये जिनको कि पूर्व कर्म के आवरण से जिन दर्शन होना महा दुर्लभ है तिनको इस बातकी क्या खबर होवे !! तिनको खोटे दूषण निकालने की ही समझ है, तथा हालमें सतरांभेद्रीपूजा में भी वस्त्र युगल प्रभुके समीप रखने में आते हैं, हमेशां शुद्धवस्त्र से प्रभुका अंग पूंजा जाता है, इत्यादि कार्यों में जिन प्रतिमाके उपभोग में वस्त्र भी आते हैं, तथा इस प्रसंग में जेठमल ने लिखा है कि "जिस रीति से सूर्याभने पूजा करी है तिसही रीतिसे द्रौपदीने करी" तो इससे सिद्ध होता है कि जैसे सूर्याभने सिद्धायतन में शाश्वती जिनप्रतिमा पूजी है तैसे इस ठिकाने द्रौपदी की करी पूजा भी जिन प्रतिमा की ही है ।
- " और जेठमल ने भद्रा सार्थवाही की करी अन्यदेव की पूजा को द्रौपदीकी करी पूजाके सदृश होने से द्रौपदी की पूजाभी अन्यदेव की ठहराई है, परंतु वो मूर्ख सरदार इतना भा नहीं समझता है क़ि कितनीक बातों में एक सरीखी पूजा होवे तो भी तिसमें कुछ बांधा