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________________ (. १४.). नहीं है जैसे हालमें भी अन्य दर्शनी, श्रावक की कितनीक रीति अनुसार अपने देवकी पूजा करते हैं तैसे इस ठिकाने भद्रा सार्थवाही ने भी द्रौपदीकी तरां पूजा करी है तोभी प्रत्यक्ष मालूम होता है किं द्रौपदीने 'नमुथ्थुणं 'कहा है. इसवास्ते तिसकी करी पूजा जिन प्रतिमा की ही है, और भद्रा सार्थवाही ने 'नमुथ्थुणं' नहीं कहा है इसवास्ते तिनकी करी पूजा अन्य देवकी है। .. - * तथा.द्रौपदीने 'नमुथ्थुणं' जिनप्रतिमाके सन्मुख कहा है यह बात सूत्र में है, और जेठमल यह बात मंजूर करता है, परंतु यह . प्रतिमा अरिहंतकी नहीं ऐसा अपना कुमत स्थापन करनेके वास्ते लिखताहै कि “अरिहंतके सिवाय दूसरोंके पासभी नमुथ्थुणं' कहा जाता है,गोशालेके शिष्य गोशालेको नमुथ्थुणं कहते थे; तथा गोशाले के श्रावक षडावश्यक करते थे तब गोशाले को नमुथ्थुणं कहतेथे" यह सब झूठ है, क्योंकि नमुथ्थणं के गुण किसी भी अन्यदेव में नहीं है, और न किसी अन्यदेवके आगे नमुथ्थुणं कहा जाता है। तथा न किसी ने अन्यदेव के आगे नमुथ्थुणं कहा है। तोभी जेठमल नेलिखा है कि "अरिहंत के सिवाय दुसरे (अन्यदेवों) के पास भी नमुथ्थुणं कहा जाताहै " तो इस लेख से जेठमलने वीतराग देवकी अवज्ञा करी है, क्योंकि इस लिखने से जेठमलने अन्यदेव और वीत. राग देव को एक सरीखे ठहराया है,हा कैसी मूर्खता!अन्यदेव और, वीतरागजिनमें अकथनीय फरक है,अपनामत स्थापन करने के वास्ते तिनकोएक सरीखे ठहराता हैऔर लिखताहै कि 'नमुथ्थण' अरिहंत केसिवाय अन्यदेवोंके पासभी कहा जाता है, सो यह लेख जैनशैली से सर्वथा विपरीत है, जैनमत के किसी भी शास्त्र में अरिहंत और अरिहंतकी प्रतिमा सिवाय अन्य देवके आगे नमुथ्थुणं कहना, या
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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