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________________ (( ११६ ) -कृष्ण वासुदेव प्रमुख घने राजे उसमें शामिलथे, पांडव भी तिन के बीच में थे, इससे तो कृष्ण पांडवादि कोई भी सम्यग्दृष्टि न हुए चाहरेजेठमल ! तुमने इतना भी नहीं समझा कि नौकर चाकर जोकाम करते हैं सो राजाहीका करा कहा जाता है, इस वास्ते द्रौपदीके पिता मांस नहीं दीया, जेकर उसका पाठ मानोगे तो कृष्ण वासुदेव, पांडव वगैरह सर्व राजायों ने मांस खाया तुमको मानना पड़ेगा ? तथा श्रीउग्रसेन राजाके घर में कृष्ण वासुदेव, प्रमुख बहुत राजाओं के वास्ते मांसमदिराका आहार बनवाया गया था तिसमें पांडवभीथे, तो क्या तिससे तिनका सम्यक्त्व नाश हो जावेगा ? नहीं, श्रेणिक राजा, कृष्ण वासुदेव प्रमुख सम्यक्त्वदृष्टि थे, परंतु तिनको एकभी अणुव्रत नहीं था तो तिससे क्या तिन को सम्यक्त्व विना कहना चाहिये ? नहीं कदापि नहीं, इसवास्ते इसमें समझने का इतना ही है कि उस समय विवाहादि महोत्सव गौरी आदिमें उस वस्तु के बनाने का प्रायः कितनेक क्षत्रियोंके कुलका रिवाज था, इस वास्ते यह कहना मिथ्या है, कि द्रौपदी के माता पिता सम्यग्दृष्टि नहीं थे तथा इस ठिकाने जेठमलने लिखा है कि " ६ प्रकार का आहार बनाया " परंतु ज्ञाता सूत्रमें ६ आहार का सूत्रपाठ है नहीं; तिस - सूत्रपाठ में चार आहारसे अतिरिक्त जो कथन है सो चार आहार का विशेषण है, परंतु ६ आहार नहीं कहे हैं, इससे यही सिद्ध होता है कि जेठमल को सूत्रका उपयोग ही नहीं था, और उसने जो जो बातें लिखी हैं सो सर्व स्वमति कल्पित लिखी है। - जेठमल लिखता है कि " द्रौपदीने प्रतिमा पूजी सो तीर्थंकर की प्रतिमा नहीं थी क्योंकि तिसने तो प्रतिमाको वस्त्र पहिनाए थे और तुम हालकी जिनप्रतिमाको वस्त्र नहीं पहिनाते हो" तिसका उत्तर
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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