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( १ ) लेके पारणे आयंबिलका तप कियापरंतु पूजातो नहीं करी" उत्तरअरेभाई! इतना तो समझो कि तपस्या करनी हो तो स्वाधीन बात है
और पूजा करने में जिनमंदिर तथा पूजाकी सामग्री आदि का योग मिलना चाहिये, सो पराधीन तथा संकट में पड़ी हुई द्रौपदी उसः स्थल में पूजा कैसे कर सक्ती ? सो विचार के देखो !
जेठमल ने लिखा है कि "द्रौपदी ने पूर्व जन्म में सात काम अयोग्य करे,इसवास्ते तिसकी करी पूजा प्रमाण नहीं"उत्तर-इससे तो ढूंढक और बुद्धिहीन ढूंढक शिरोमणि जेठमल श्रीमहावीर स्वामीको भी सञ्चेतीर्थकर नहीं मानत होवेंगे ! क्योंकि श्री महावीरस्वामी के जीवने भी पूर्व जन्म में कितनेक अयोग्य काम करे धे-जैसे कि
(१) मरीचिके भवमें दीक्षा विराधी सो अयोग्य। (२)त्रिदंडीका भेष बनाया सो अयोग्य । (३) उत्सूत्र की प्ररूपणा करी सो अयोग्य । (४) नियाणा किया सो अयोग्य। (५) कितनेही भवों में संन्यासी होके मिथ्यात्व की प्ररूपणा ___ करी सो अयोग्य। (६) कितनेही भवों में ब्राह्मण होके यज्ञ करे सो अयोग्य । (७) तीर्थंकर होके ब्राह्मणके कुलमें उत्पन्न हुए सो अयोग्य।
इत्यादि अनेक अयोग्य काम करतो क्या पूर्वादि जन्म में इन कामों के करनेसे श्रीमन्महावीर अरिहंत भगवंत को तीर्थंकर न मानना चाहिये ? मानना ही चाहिये, क्योंकि कर्मवशवर्ती जीव अनेक प्रकार के नाटक नाचता है, परंतु उससे वर्तमान में तिसके उत्तमपणे को कुछभी बाधा नहीं आती है ; तैसे ही द्रौपदी की करी