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________________ विहराया तो किसी श्रावक ने विहराया क्यों नहीं कहा.! तथा इस अवसर्पिणी में प्रथम सिद्ध मरुदेवी माता हुई, श्री वीर प्रभुका अभिग्रह पांच दिन कम ६ महीने चंदन बालाने पूर्ण किया, संगम के उपसर्ग से ६ महीने वत्सपाली बुढिया क्षीर से प्रभु को प्रतिलाभती भई, तथा इस चउवीसी में श्रीमल्लिनाथ जी अनंती चउवीसीयां पीछे स्त्री पणेतीर्थंकर हुए,इत्यादिक बहुत बड़े २ काम इस चउवीसी में स्त्रियोंने किये हे प्रायः पुरुष तो शुभ कार्य करे उसमें क्या आश्चर्य है ! परंतु स्त्रियों को करना दुर्लभ होता है,पुरुष को तो पूजाकी सामग्री मिलनी सुगम है, परंतु स्त्री को मुश्कल है, इसवास्ते द्रौपदी का अधिकार विस्तार से कहा है, यदि स्त्रीने ऐसे पूजा करी तो पुरुषों ने बहुत करी हैं इस में क्या संदेह है ? कुछ भी नहीं । और जो कहा है कि एक ही वार पूजाकरी कही है पीछे पूजा करी कहीं भी नहीं कही है इस का उत्तर-प्रतिमा पूजनी तो एक वार भी कही है, परतु द्रौपदी ने भोजन किया ऐसे तो एक वार भी नहीं कहा है तो तुमारे कहे मजब तो तिसने ग्वाया भी नहीं होवेगा! तथातुंगीया नगरीक श्रावकों नेसाधुको एक ही समय वंदना करी कही है, तो क्या दूसरे समय चंदना नहीं करी होगी ? जरा विचार करो कि लग्न (विवाह) लमय मोहकी प्रबलता में भी ऐसे पूर्णोल्लाससे जिन पूजा करी है तो दूसरे समय अवश्य पूजा करीही होवेगी इसमें क्या संदेह है? परंतु सूत्रकार को ऐसे अधिकार वारवार कहने की जरूरत नहीं है, क्योकि आगमकी शेली एसी ही है, और उस को जानकार पुरुष हा समझते हैं; परंतु तुमारे जैसे बुद्धिहीन मूर्ख नहीं समझते है, सो तुमारामिथ्याव का उदय है। .. जेठमलने लिखा है कि “पयोत्तर राजा के वहां द्रौपदीने बेले
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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