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(१३० झुक के, हाथ जोड़के,दशों नखों को मिलाके मस्तक पर अंजली करके ऐसे कहे, नमस्कार होवे अरिहंत भगवंत प्रति यावत् सिद्धिगतिको प्राप्त हुए हैं, यहाँ यावत् शब्दसे संपूर्ण शक्रस्तव कहना, पीछे वंदना नमस्कार करके जिन घरसे निकले।
पूर्वोक्त प्रकारके सूत्रोंमें कथन हैं तो भी मिथ्यादृष्टि ढूंढिये जिन प्रतिमा की पूजा नहीं मानते हैं सो तिनको मिथ्यात्वका उदय है। - जेठमल ने लिखाहै कि किसीने वीतरागकी प्रतिमा पूजी नहीं है और किसी नगरी में जिनचैत्य कहे नहीं है ” इसका उत्तर-श्री उक्वाइ सूत्र में चंपा नगरी में "बहुला अरिहंत चेइयाई " अर्थात् बहुते अरिहंतके चैत्य हैं एसे कहा है, और अन्य सब नगरीयों के वर्णन में चंगनगरी की भलावणा सूत्रकार ने दी है, तो इससे ऐसे निर्णय होता है कि सब नगरीयों में महल्ले महल्ले चंपान गरी की तरह जिन मंदिर थे, तथा आनंद, कामदेव,शंख, पुष्कली प्रमुख श्रावकों तथा श्रेणिक, महाबल प्रमुख राजाओं की करी पूजाका अधिकार सूत्रोंमें बहुत जगह है इसवास्ते जिस जगह पूजा का अधिकार है 'उस जगह जिनमंदिर तो है ही इस में कोई शक नहीं तथा तिन श्रावकों के पूजा के अधिकार में “ कयबलि कम्मा" शब्द खलासा है जिसका अर्थस्वपर सब दर्शन में 'देवपूजा' ही होता है, इसवास्ते बहुत श्रावकों ने जिन प्रतिमा पूजी है और बहुत ठिकाने जिन मंदिर थे ऐसे खुलासा सिद्ध होता है। - जेठमल ने लिखाहैकि" फकत द्रौपदी ने ही पूजा करी है और
सोभी सारी उमर में एक हीवार करी है" उत्तर-इस कुमति के कथन • का सार यह है कि पूजा के अधिकार में स्त्री कही तो कोई श्रावक
क्यों नहीं कहा ? अरे मूर्यो के भाई ! रेवती, श्राविकाने औषध