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( १ ) पणामं करेइ लोमहत्थयं परामुसइ एवं जहा सुरियाभो जिणपडिमाओ अच्चे तहेव भाणियव्वं जावधुवं डहइ धुवं डहइत्ता वाम जाणु अंचेइ अंचइत्ता दाहिण जाणु धरणी तलंसिनिहट्ट तिखत्तो मुद्धाणं धरणीतलंसि निवेसेइ निवेसद्वत्ता इसिं पच्चुणमइ करयल जाव कट्ट एवं वयासि नमोध्थणं अरिहंताणं भगवंताणं जाव संपत्ताणं वंदह नमंस जिन घरानो पडिणिक्खमइ ॥
अर्थ-तब सो द्रौपदी राजवरकन्या जहां स्नान मज्जन करने का घर (मकान ) है तहां आवे, मज्जन घर में प्रवेश करे, स्नान करके किया है वलिकर्म पूजाकार्य अर्थात् घरदेहरे में पूजा करके कौतुक तिलकादि मंगल दधि दूर्वा अक्षतादिक सो ही प्रायश्चित्त दुःस्वप्नादि के घातक किये हैं जिसने शुद्ध और उज्ज्वल बड़े जिन मंदिर में जाने योग्य ऐसे वस्त्र पहिर के मज्जन घर में से निकले,जहां जिनघर है वहां आवे, जिन घर में प्रवेश करे, करके देखते ही जिनप्रतिमा को प्रणाम करे पीछे मोरपीछी ले, लेकर जैसे सूर्याभ देवता जिन प्रतिमाको पूजे तैसे सर्व विधि जाणना, सो सूर्याभका अधिकार यावत् धूपदेने तक कहना।पीछे धूप देके बामजानु (खब्बा गोड़ा ) ऊंचा रखे, जिमणा जानु (सज्जा गोड़ा)धरती पर स्थापन करे, करके तीन वेरी मस्तक पृथ्वी पर स्थापे, स्थापके थोड़ीसी नीचे