SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 124
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१२ ) मालूम होता है कि चहुद्दे के चोर तो वोही हैं जो सूत्रों में कही हुई बातों को उत्थापते हैं,सूत्रों को उत्थपाते हैं,अर्थ फिरा लेते हैंशात्रोक्त भेषको छोड़के विपरीत भेष में फिरते हैं इतनाहीनहीं, परन्तु शासन के अधिपति श्रीजिनराज के भी चोर हैं और इस से इनको निश्चय राज्यदंड (अनंत संसार)प्राप्तहोनेवाला है। ----*ORNON(१९) द्रौपदी ने जिन प्रतिमा पूजी है। १९ में प्रश्नोत्तर में द्रौपदीके जिनप्रतिमा पूजने का निषेध करने वास्ते जेठमल ने बहुत कुतर्के करी हैं, परन्तु वे सर्व झूठ हैं इस वास्ते क्रम से तिनके उत्तर लिखते हैं। श्रीज्ञाता सूत्रमें द्रौपदी ने जिन मंदिर में जाकर जिन प्रतिमा की १७ सतरे भेदे पूजा करी, नमोथ्थुणं कहा, ऐसा खुलासा पाठ है-यतः तएणंसा दोवड्रायवर कन्ना जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छ मज्जणघर मणुप्पविसद् राहाया कयबलि कम्मा कयकोउय मंगल पायंच्छित्ता सुद्ध पावसाइंवत्थाई परिहियाई मज्जण घरात्री पडिणिक्खमइजेणव जिनघरे तेणेव उवागच्छद्द जिनधरमणु पविसह पविसइत्ता आलोए जिणपडिमाणं
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy