SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 123
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१७) " श्री दशवकालिक सूत्र में विधिवादे 'दंडगंसिवा' इसशब्द करके दंडा पडिलेहना कहा है। . . - श्रीप्रश्न व्याकरण सूत्र में पीठ, फलक, शय्या, संथारा, वस्त्र, पात्र, कंबल, दंडा, रजोहरण, निषद्या, चोलपट्टा, मुखवस्त्रिका, पाद प्रोंछन इत्यादि मालिक के दिये विना अदत्ता दान, साधु ग्रहण न करे ऐसे लिखा है। इससे भी साधु को दंडा ग्रहण करना सिद्ध होता है, अन्यथा विना दिये दंडे का निषेध शास्त्रकार क्यों करते ? श्री प्रश्न व्याकरण सूत्रका पाठ यह है । अवियत्त पीढ फलग सेज्जा संथारगवत्थ पाय कंबल दंडगर ओहरण निसज्ज चोलपट्टग महपोत्तिय पादपंछणादि भायणंभंडोवहिउवगरणं ॥ . ... इत्यादि अनेक जैन शास्त्रों में दंडेका कथन है,तो भी अज्ञानी ढूंढक विना समझे विलकुल असत्य कल्पना करके इस बातका खंडन करते हैं, (जो कि किसी प्रकार भी हो नहीं सकता है ) सो केवल उनकी मूर्खता का ही सूचक है । प्रश्नके अंतमें जेठमल ढूंढकने “सात क्षेत्रों में धन खरचाते हो उससे चहुट्टेके चोर होतेहो" ऐसा महा मिथ्यात्वके उदयसे लिखाहै परन्तु उसका यह लिखना ऊपरके दृष्टांतों से असत्य सिद्ध होगया है क्योंकि सूत्रों में सात क्षेत्रों में द्रव्य खरचना कहा है, और इसी मूजिव प्रसिद्ध रीते श्रावकलोगद्रव्य खरचते हैं, और उससे वो पुण्यानुबंधि पुण्य वांधते हैं, इतना ही नहीं, बलकि बहुत प्रशंसाके पात्र होते हैं यह बात कोई छिपी हुई नहीं है परन्तु असलीतहकीकात करनेसे
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy