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________________ इस प्रसंग में जेठमल ने श्रीदशवैकालिकसूत्रः की यह गाथा लिखी है-तथाहिःपिंड सिज्जंच वश्यं च चउथ्थं पायमेवय। अकप्पियन इच्छेज्जापडिगाहिंचकप्पियंांठा - इस इलोकका अर्थ प्रकट पणे इतना ही है कि आहार,शच्या वस्त्रऔर चौथा पात्र यह अकल्पनिक लेने की इच्छा न करे, और कल्पनिक लेलेवे तथापि जेठमल ने दंडे को अकल्पनिक ठहराने वास्ते पूर्वोक्त श्लोक के अर्थमें 'दंडा' यह शब्द लिख दिया है और तिससे भी जेठमल दडे को अकल्पनिक सिद्ध नहीं कर सका है, बलकि जेठमल के लिखने से ही अकल्पनिक दंडे का निषेध काने से कल्पनिक दंडा साधुको ग्रहण करना सिद्ध होगया,आहार, शय्या, वस्त्र, पात्रवत् । तो भी साधुको दंडा रखना सूत्र अनुसार है, सो ही लिखते हैं:' श्री भगवतीसूत्र में विधिवादे दंडा रखना कहा है सो पाठ प्रथम प्रश्नोत्तर में लिखा है। .. 'श्री ओघनियुक्ति सूत्र में दंडे की शुद्धता निमित्त तीन गाथा कही हैं। अन्तरंग उक्तोऽथवाह्याचारमाह । उपबृंहणा दर्शनादिगुणवतांप्रशंसा पुनः स्थिरीकरणं धर्मानुष्ठानं प्रति सीदतां धर्मवतां पुरुषाणां साहाय्यकरणेनधर्मेस्थिरीकरणं पुनर्वात्सल्यं साधर्मिकाणां भक्तपानायेभक्तिकरणं पुनः प्रभावनाच स्वतीर्थोन्नतिकरणमेतेऽष्टौ आचाराः सम्यकस्य ज्ञेया इत्यर्थः ॥३१॥
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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