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________________ ( १ ) जिनप्रतिमा की पूजा श्रावक धर्मकी रीतिके अनुसार है, इसवास्ते सोभी मानना ही चाहिये, न माने सो सूत्रविराधक है। जेठमल ने लिखा है कि"द्रौपदीकी पूजा में भलामणभी सूर्याभ कृत जिनप्रतिमा की पूजाकी दी है परंतु अन्य किसी की नहीं दी है " उत्तर-सूर्याभ की भलामण देने का कारण तो प्रत्यक्ष है कि जिन प्रतिमाकी पूजाका विस्तार श्रीदेवर्धिगणि क्षमाश्रमणजी ने रायपसेणी सूत्रमें सूर्याभ के अधिकारमें ही लिखा है,सोएक जगह लिखासब जगह जान लेना,क्योंकि जगह जगह विस्तारपूर्वक लिखने से शास्त्रभारी हो जाते हैं, और आनंद कामदेवादि की भलामण नहीं दी, तिस का कारण यह है कि तिनके अधिकार में पूजा का पूरा विस्तार नहीं लिखा है तो फेर तिनकी भलामण कैसे देखें ? तथा यह भलामणा तीर्थंकर गणधरों ने नहीं दी है, किंतु शास्त्र लिखने वाले आचार्यने दी है, तीर्थंकर महाराजनेतो सर्व ठिकाने विस्तार पूर्वक ही कहा होगा परंतु सूत्र लिखने वालेने सूत्र भारी हो जाने के विचार से एक जगह विस्तार से लिख कर और जगह तिस की भलामणा दी है *। तथा आनंद श्रावक को सूत्र में पूर्ण बाल तपस्वी की भला *जैसे ज्ञातासूत्र में श्रीमल्लिनाथ स्वामी के जन्म महोत्सवकी भलामण जंबूदीप पन्नति सूत्रकी दी है सो पाठ यह है तेणं कालेणं तेणं समएणं अहोलोगवत्थव्वाओअहदिसाकमारिय महत्तरियाओ जहा जंबूद्दीवपण्णत्तिए सव्वं जम्मणं भाणियव्वं णवरं मिहिलियाए गयरीए कुंभरायस्स भवणंसि पभावइए देवीए अभिलावो जोएयवो जाव गंदीसरवर दीवे महिमा॥ इत्यादि अनेक पापों में भनेक शास्त्रों की मनमाया दी है। "
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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