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________________ ( १२१ ) जेठमल लिखताहै कि"आनंदादिक श्रावकोंने व्रत आराधे,पडिमा अंगीकार करी, संथारा किया, यह सर्व सूत्रों में कथन है, परंतु कितना धन खरचा और किस क्षेत्र में खरचा सो नहीं कहा है ॥ उत्तर-अरे भाई ! सूत्र में जितनी बात की प्रसंगोपात जरूरत थी, उतनी कही है, और दूसरा नहीं कही है, और जो तुम विना कही कुल वातोंका अनादर करतेहो तो आनंदादिक दश ही श्रावकों ने किस मुनिको दान दिया, वो किस मुनिको लेने के वास्ते सामने गये, किस मुनिको छोड़ने वास्ते गये, किस रीति से उन्होंने प्रति क्रमण किया इत्यादि बहुत बातें जोकि श्रावकोंक वास्ते सभवितहैं कहीनहीं हैं,तो क्या वो उन्होंने नही करी है ? नही जरूर करी हैं, तैसे ही धन खरचने संबंधी बातभी उसमें नहीं कहीहै, परंतु खरचा तो जरूर हा है, और हम पूछते हैं कि आनंदादि श्रावकों ने कितने उपाश्रय कराये सो बात सूत्रों में कही नहीं है, तथापि तुम ढूंढक तथा श्रोठाणागमूत्रके चौधे ठाणेके चौथे उद्देशेमें श्रावक शब्द का अर्थ टीकाकार महाराज ने किया है, उसमें भी सात क्षेत्रमें धन लगाने से श्रावक बनता है, अन्यथा नही तथाहि: श्रान्ति पचन्ति तत्त्वार्थ श्रद्धानं निष्ठां नयन्तीति श्रास्ताथावपन्ति गुणवत्सप्तक्षत्रेषु धनबीजानि निक्षिपन्तीति वास्तथा किरन्ति क्लिष्टकर्मरजो विक्षिपन्तीति कास्ततःकर्मधारये श्रावका इतिभवति॥ यदाह ! श्रद्धालुतां श्राति पदार्थ चिन्तनद्धानानि पात्रेषु वपत्यनारतं । किरत्यगुण्यानि सुसाधु संबनादथापि तं श्रावक माहुरंजसा । तथा थीदानकुलझमे मातक्षेत्र में बीजा धन यावत् मोक्षफलका देनेवान्ना कहाहै तथाधिःजिणभवणबिंब पुत्थय संघसरूवेसु सत्त खित्तेसु। वविअंधणपि जायइ सिवफलयमहो अणंतगणं ॥ २०॥ इत्यादि पनेशमानों में सप्तक्षेत्र विषयिक वर्णन,परंतु भानष्टिविना कैसे दिखे !
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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