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________________ ( १२३ ) लोग उपाश्रय कराते हो सो किल शास्त्रानुसार कराते हों सोदिखाओ *! और जेठमल लिखता है कि "आनंदादिक श्रावकों ने संघ निकाला, तीर्थ यात्रा करी, मंदिर बनवाये, प्रतिमा प्रतिष्ठी वगैरह बातें सूत्र में होवे तो दिखाओ " उत्तर - आनंदादिक श्रावकों के जिनमंदिरों का अधिकार श्रीसमवायांग सूत्र में है, आवश्यक सूत्र में तथा योग शास्त्रमें श्रेणिक राजाके बनवाये जिनमंदिर का अधिकार है, वग्गुर श्रावक ने श्री मल्लिनाथजी का मंदिर बंधाया सो अधिकार श्री आवश्यक सूत्र में है, तथां उसी सूत्र में भरत चक्र वर्ती के अष्टापद पर्वत पर चउवीस जिनबिंबस्थापन कराने का अधिकार है, इत्यादि अनेक जैनशास्त्रों में कथन है, तथापि जैसे नेत्र विना के आदमी को कुछ नहीं दिखता है, वैसे ही ज्ञानचक्षु विना के जेठमल और उसके ढूंढकों को भी सूत्र पाठ नहीं दिखता है, तथा जेठमल ने कुयुक्तियों करके सात क्षेत्र उथापे हैं तिनं का अनुक्रम से उत्तर- १-२ क्षेत्र जिनबिंब तथा जिन भवन - इसकी बाबत जेठमल ने लिखा है कि " मंदिर प्रतिमा तो पहलेथे ही नहीं, और जो थे ऐसे कहोगे तो किसने कराये वगैरह अधिकार सूत्र में दिखाओ" इसका उत्तर प्रथम हमने लिख दिया है, और उस से दोनों क्षेत्रसिद्ध होते हैं ॥ ३ क्षेत्र शास्त्र - इसकी बाबत जेठमल लिखता है कि " पुस्तक तो महावीर स्वामी के पीछे (९८०) वर्षे लिखे गये हैं इससे पहिले तो पुस्तक ही नहीं थे, तो पुस्तक के निमित्त द्रव्य निकालने का क्या कारण ?” उत्तर- इस बात का निर्णय प्रथम हम कर आए हैं, तथा * पंजाब देशमें थानवा, जैनसभा वगैरह नाम से मकान बनाये जाते हैं; जिनके निमित्त धानक या जैनसभा, या धर्म के नाम से चढ़ावा भी लोगों से लिया जाता है ॥
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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