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प्रकाशकीय
भारत के ऋषि-महर्षि एव सन्त-समुदाय ने जो नैतिक, धार्मिक तथा आध्यात्मिक उपदेश दिया है, उसमे भगवान महावीर का उपदेश विशिष्ट स्थान रखता है। परन्तु यह उपदेश अर्धमागधी भाषा मे है और जैन सूत्रो मे यत्र तत्र विखरा हुआ होने से सर्वसामान्य जनता तक नही पहुँच पाता है। इस समस्या को हल करने के लिए हमारे पूज्य पिता श्री शतावधानी पडित श्री धीरजलाल शाह ने जैन सूत्रों का दोहन करके 'श्री वीर-वचनामृत' नामक ग्रन्थ की रचना की, जिसमे मूल वचन, उनका आधार-स्थान और सरल-स्पष्ट गुजराती अनुवाद के साथ आवश्यक विवेचन भी दिया।
उक्त गुजराती सस्करण का प्रकाशन दिनाक १८-११-६२ को बम्बई मे भव्य समारोह के साथ सम्पन्न हुआ। जैन जनता ने उसका अभूतपूर्व सत्कार किया। ग्रन्थ की २००० प्रतियाँ हाथोहाथ बिक गई। उस समारोह के अवसर पर इस ग्रन्थ का हिन्दी संस्करण 'श्री महावीर-वचनामृत' नाम से प्रकाशित करने का निर्णय किया गया।
किसी भी कार्य की प्रारम्भिक स्थिति मे कुछ न कुछ न्यूनताओ का रह जाना स्वाभाविक है, इसलिए गूजराती सस्करण का पर्याप्त संशोधन किया गया। तदनन्तर मन्दसौर-निवासी प० रुद्रदेव त्रिपाठी