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[] एम० ए० साहित्य-साख्य-योगाचार्य ने बडे ही परिश्रम से केवल चार मास की अवधि मे उसका हिन्दी अनुवाद तैयार किया। उसका भो संशोधन हुमा और कलकता मे रेफिल आर्ट प्रेस के अधिपति श्री गोमाचन्द्रजी सुराणा का पूर्ण सहयोग प्राप्त होने से केवल तीन मास की अवधि मे यह ग्रन्थ सुन्दर ढग से छपकर तैयार हो गया। इसके पत्र-संगोधन मे पं० प्रभुदत्त शास्त्री साहित्य-रल, साहित्यप्रभाकर ने पूर्ण सहायता की। हम इन महानुभावो को हार्दिक धन्यवाद देते हैं।
जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक समाज के लोकप्रिय एव विद्वान् आचार्य श्री विजयवर्मभूरि जी महाराज ने, जैन श्वेताम्बर स्थानकवामी समाज के बहुश्रुत मान्य विद्वान् उपा० श्री अमर मुनिजी ने और दिगम्बर सम्प्रदाय के सुप्रसिद्ध विद्वान् प० कलासचन्द्र शास्त्री ने इम अन्य का प्राक्कयन लिखने की कृपा को तथा जैन श्वेताम्बर तेरापथी सम्प्रदाय के आचार्य श्री तुलसीजी के गिप्यरत मुनित्री न यमरजी ने विस्तृत और विगद प्रस्तावना मे इस ग्रन्य को अलकृत किया। ५० घनगिरि शास्त्रो, म० म० परमेश्वरानन्द शास्त्री और डॉ मटन मित्र मोमामाचार्य ने मङ्गल भावना प्रदान की। ये मर्व महानमार्यो के प्रति हम हार्दिक पृतनता प्रगट करते है।
मयोदय-प्रवृत्ति के नचारक पज्य विनोबाजो ने पत्र द्वाग विगिट मुम्भव देकर और हमारा अति आबदमे म ग्रन्धका ममपंग स्वीकार भार हमे अनि सात दिया है।
आयो पिजन अन्ननगेम्वरजी महागज, १०मा० श्री पिय