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स्थाद्वादम.
राजै.शा.
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न त ॐ कृष्टे च परमाणौ स एवायमिति प्रत्यभिज्ञानं च भवति तेऽन्त्या विशेषा इति । अमी च विशेषरूपा एव । न तु Y द्रव्यत्वादिवत्सामान्यविशेषोभयरूपा व्यावृत्तेरेव हेतुत्वात् । Ya तथा नित्यद्रव्योंमें रहनेवाले और अत्यन्त व्यावृत्ति (भेद करने ) के कारण ऐसे जो हैं, वे विशेष हैं। भावार्थ-अन्त
(आख़िर ) में रहनेवाले ( जिनकी अपेक्षासे फिर कोई भी भेद न हो ) ऐसे अर्थात् केवल नित्यरूप एक द्रव्यमें रहनेवाले जो 1 है, वे विशेष कहलाते है । और ये विशेष द्रव्य, आदि पदार्थोंसे भिन्न ऐसे लक्षणको धारण करते हैं, इस कारणसे भिन्न पदार्थ
है । सोही वैशेषिक दर्शनपर प्रशस्तभाष्यके कर्ता कहते हैं कि, ये विशेष अंतमें होते हैं, इस कारण अन्त्य है । और अपने आश्रयके विशेषक (भेदक ) होनेसे विशेष है अर्थात् उत्पत्ति तथा विनाशसे रहित ऐसे जो परमाणु, आकाश, काल, दिशा आत्मा ।
और मन नामक द्रव्य है, इनमें द्रव्यके प्रति एक एक विद्यमान रहते हुए सर्वथा व्यावृत्तिरूप बुद्धिके कारण जो है, वे विशेष है। Y भावार्थ-जैसे हम तुम वगैरहके वृषभ (बैल) आदिमें अश्व (घोड़े) आदिकोंसे तुल्य आकार, तुल्य गुण, तुल्य क्रिया,
अवयवोंकी वृद्धि, अवयवविशेष ( किसी एक अवयवका अधिक होना) और संयोग, इन सबके निमित्तसे होनेवाली यह वृषभशुक्ल है, शीघ्र गमन करनेवाला है, मोटा है, ककुमान (थूवेको धारण करनेवाला ) है तथा बड़े टोकरेका धारक है, इस प्रकारकी प्रतीतिकी भिन्नता देखी जाती है । उसी प्रकार हमसे अधिक ज्ञान आदिके धारक जो योगी है, उनके-नित्य तथा तुल्य आकार, तुल्य गुण और तुल्य क्रियाको धारणकरनेवाले ऐसे परमाणुओंमें, मुक्त आत्माओंमें और मनोंमें भेद करनेका कोई दूसरा निमित्त न होनेसे जिन निमित्तोंसे आधार आधारके प्रति यह इससे विलक्षण ( भिन्न ) है, यह इससे विलक्षण है, इसप्रकार प्रतीतिकी भिन्नता होती है अर्थात् भिन्न २ प्रतीति होती है और देशसे विप्रकृष्ट ( दूरदेशमें रहनेवाले ) तथा कालसे धू विप्रकृष्ट ( अत्यंत-भूत, भविष्यत् कालमें रहनेवाले ) परमाणु यह वही परमाणु है, इस प्रकारका प्रत्यभिज्ञान होता है, वे अन्त्य छ अर्थात् विशेष है। और ये विशेषरूप ही है । द्रव्यत्व आदिके समान सामान्य तथा विशेष इन दोनों रूप नहीं है । क्योंकि ये ४ विशेष केवल व्यावृत्तिके ही कारण है । सारांश-वैशेषिक मतवाले यह कहते है कि, यद्यपि वृषभ और अश्वमें आकृति, गुण
तथा क्रिया समान है, तथापि वृषभ अश्वकी अपेक्षा मोटाई, थूवा (खुंध ) और घंटाको अधिक धारण करता है, इसकारण हम ३ लोग अश्व और वृषभमें जो भेद है, उसको जान जाते है। और इसी प्रकार अन्य इंद्रियगोचर पदार्थोंमें भी किसी न किसी
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