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धारक द्रव्यत्व ही है, इसी प्रकार प्रत्येक द्रव्यमें रहनेसे सत्ता भी द्रव्य नहीं है । भावार्थ-वैशेषिकोंके मतमें या तो अद्रव्य अर्थात् जो द्रव्यसे उत्पन्न न हुआ हो अथवा द्रव्यका उत्पादक न हो, वह द्रव्य है और या अनेकद्रव्य अर्थात् जो अनेकद्रव्योंसे उत्पन्न होवे वा अनेक द्रव्योंका जनक होवे; वह द्रव्य है । उनमें आकाश, काल, दिशा, आत्मा मन और परमाणु ये अद्रव्य द्रव्य है, और द्वयणुक (दो अणुके धारक) आदि जो स्कंध हैं, वे अनेकद्रव्य द्रव्य हैं । और एकद्रव्यका धारक तो द्रव्य ही नहीं है। और सत्ताली | एकद्रव्यवाली है, इसकारण द्रव्यका जो लक्षण है, उससे भिन्न लक्षणको धारण करनेसे सत्ता द्रव्य नहीं है । इसीप्रकार सत्ता गुण | | भी नहीं है अर्थात् गुणसे भी भिन्न है, क्योंकि गुणोंमें ( प्रत्येक गुणमें ) रहती है, गुणत्वके समान । भावार्थ-जैसे चौवीसों गुणोंमेंसे प्रत्येकगुणमें रहनेसे गुणत्व गुण नहीं होता है, इसी प्रकार प्रत्येक गुणमें रहनेसे सत्ता भी गुण नहीं है । और यदि सत्ता गुण होवे, तो प्रत्येक गुणमें न रहै, कारण कि, गुण निर्गुण ( गुण रहित ) है । और गुण सत् अर्थात् है; ऐसी प्रतीति होनेसे | गुणोंमें' सत्ता है, यह सिद्ध होता है । एवमेव सत्ता जो है, वह कर्म भी नहीं है। क्योंकि जैसे कर्मत्व प्रत्येक कर्ममें रहता है, | इसीप्रकार यह भी प्रत्येक कर्ममें रहती है । और यदि सत्ता कर्म होवे तो कर्मोंमें न रहै । क्योंकि कर्म जो है, वे निष्कर्म |
कर्म सत् है । ऐसी प्रतीतिके होनेसे निश्चय होता है कि, कौमें सत्ता रहती है । इस कारण सत्ता पदार्थान्तर al (द्रव्य गुण और कर्म इन तीनोंसे भिन्न एक चौथा पदार्थ ) है । ४ ।। || तथा विशेषा नित्यद्रव्यवृत्तयोऽन्त्या अत्यन्तव्यावृत्तिहेतवस्ते द्रव्यादिवैलक्षण्यात्पदार्थान्तरम् । तथा च प्रशस्तकरः-" अन्तेषु भवा अन्त्याः । स्वाश्रयविशेषकत्वाद्विशेषाः । विनाशारम्भरहितेषु नित्यद्रव्येष्वऽण्वाकाशका-1 लदिगात्ममनस्सु प्रतिद्रव्यमेकैकशो वर्तमाना अत्यन्तव्यावृत्तिबुद्धिहेतवः। यथाऽस्मदादीनां गवादिष्वश्वादिभ्यस्तुल्याकृतिगुणक्रियावयवोपचयाऽवयवविशेषसंयोगनिमित्ता प्रत्ययव्यावृत्तिर्दृष्टा गौः शुक्लः शीघ्रगतिः पीनः ककुद्मान् महाघण्ट इति । तथास्मद्विशिष्टानां योगिनां नित्येषु तुल्याकृतिगुणक्रियेषु परमाणुषु मुक्तात्ममनःसु चान्यनिमित्ताऽसम्भवाद्येभ्यो निमित्तेभ्यः प्रत्याधारं विलक्षणोऽयं विलक्षणोऽयमितिप्रत्ययव्यावृत्तिर्देशकालविप्र-|
१. अन्तेऽवसाने वर्तन्त इत्यन्त्याः यदपेक्षया विशेषो नास्तीत्यर्थः । एकमात्रवृत्तय इति भावः।