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IN कारणसे भेद जान लेते है। परंतु नित्य तथा समान आकृति, गुण और क्रियाके धारक परमाणुओंमें, आकाशमें, कालमें, दिशामें, Kell
आत्माओंमें तथा मनोंमें एकके दूसरेसे अर्थात् एक परमाणुसे दूसरे परमाणुमें, एक आत्मासे दूसरे आत्मामें इसीप्रकार आकाश | आदि अन्य इंद्रिय अगोचर पदार्थोंमें भेद करानेवाला कोई भी बाह्यकारण नहीं है, इसकारण उनमें जो योगियोंके भेदका ज्ञान | होता है, उस भेदज्ञानका कारणभूत एक विशेषनामक पदार्थ हमारे मतमें माना गया है । ५। | तथा अयुतसिद्धानामाधार्याधारभूतानामिहप्रत्ययहेतुः सम्बन्धः समवाय इति। अयुतसिद्धयोः परस्परपरिहारेण पृथगाश्रयानाश्रितयोराश्रयाश्रयिभावः ' इह तन्तुषु पटः' इत्यादेः प्रत्ययस्यासाधारणं कारणं समवायः । यद्वशात् स्वकारणसामर्थ्यादुपजायमानं पटाद्याधार्य तन्त्वाद्याधारे सम्बध्यते । यथा छिदिक्रिया च्छेद्येनेति । सोऽपि
द्रव्यादिलक्षणवैधात्पदार्थान्तरमिति षट्पदार्थाः। ६। KI और अयुतसिद्ध आधार्य तथा आधारभूतोंके इहप्रत्ययका कारण जो संबंध है, वह समवाय है अर्थात् एक दूसरेको छोड़कर .. 1 अन्य किसी आधारमें न रहनेवाले ऐसे गुण गुणी आदिक जो एक दूसरेमें रहते है; वे अयुतसिद्ध है; उन अयुतसिद्धोंके जो 'इन
ततुओंमें पट है । ' इत्यादि प्रत्ययका असाधारण कारण है, वह समवाय है भावार्थ-जैसे छिदिक्रिया (छेदन करने रूप क्रिया)। छेद्य (छेदने योग्य ) मे संबंधित है । उसी प्रकार जिसके वशसे अपने कारणोंकी सामर्थ्यसे उत्पन्न हुआ पटादि आधेय ( रहने योग्य ) पदार्थ तंतु आदि आधारमें संबंधित होता है, वह समवाय है । और यह समवाय द्रव्य आदिके लक्षणोंको नहीं धारण | करता है । इसकारण यह समवाय भी, उन पूर्वोक्त पांचों पदार्थोंसे भिन्न एक छट्ठा पदार्थ है । । साम्प्रतमक्षरार्थो व्याक्रियते।सतामपीत्यादि। सतामपि सद्बुद्धिवेद्यतया साधारणानामपि षण्णां पदार्थानां मध्ये क्वचिदेव केषुचिदेव पदार्थेषु सत्ता सामान्ययोगः स्याद्भवेत् न सर्वेषु । तेषामेषा वाचोयुक्तिः। सदिति। यतो द्रव्यगुणकर्मसु सा सत्ता इति वचनाद्यत्रैव सत्प्रत्ययस्तत्रैव सत्ता । सत्प्रत्ययश्च द्रव्यगुणकर्मस्वेवातस्तेष्वेव सत्तायोगः। सामान्यादिपदार्थत्रये तु न । तदभावात् । इदमुक्तं भवति । यद्यपि वस्तुस्वरूपमस्तित्वं सामान्यादित्रयेऽपि | विद्यते । तथापि तदनुवृत्तिप्रत्ययहेतुर्न भवति । य एव चानुवृत्तिप्रत्ययः स एव सदितिप्रत्यय इति । तदभावान्न