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द्विादमं.
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ऐसे घूमरूप कार्यकी उत्पत्ति देखते हैं। भावार्थ-जैसे गीले इंधनके संयोगसे अग्नि धूमको उत्पन्न करता है । उसी प्रकार सामग्रीविशेषसे तेजके परमाणु भी तमको उत्पन्न करते है। इस प्रकार दीपक, नित्य तथा अनित्य ये दोनों धर्म सिद्ध हुए। और वुझनेके पहले जब कि जलता हुआ दीपक है, उसमें भी नये नये पर्यायोंकी उत्पत्ति तथा नाश होनेसे अनित्यत्व है।
और उन सभी पर्यायोंमें दीपकका संबंध है, इसलिये नित्यत्व है । इस प्रकार दीपकमें नित्य और अनित्यरूप दोनों ही धर्म रहते है॥ ___एवं व्योमाप्युत्पादव्ययध्रौव्यात्मकत्वान्नित्यानित्यमेव । तथा हि-अवगाहकानां जीवपुद्गलानामवगाहदानोपग्रह एव तल्लक्षणम् ।“ अवकाशदमाकाशम्" इति वचनात् । यदा चावगाहका जीवपुद्गलाः प्रयोगतो विनसांतो वा एकस्मान्नभःप्रदेशात्प्रदेशान्तरमुपसर्पन्ति तदा तस्य व्योम्नस्तैरवगाहकैः सममेकस्मिन्प्रदेशे विभागः
उत्तरस्मिंश्च प्रदेशे संयोगैः। संयोगविभागौ च परस्परं विरुद्धौ धम्मौं, तद्भेदे चावश्यं धर्मिणो भेदः । तथा y चाहुः " अयमेव हि भेदो भेदहेतुर्वा यद्विरुद्धधर्माध्यासः कारणभेदश्चेति” । ततश्च तदाकाशं पूर्वसंयोगवि-y
नाशलक्षणपरिणामापत्त्या विनष्टम् । उत्तरसंयोगोत्पादाख्यपरिणामानुभवाच्चोत्पन्नम् । उभयत्राकाशद्रव्यस्यानुग| तत्वाच्चोत्पादव्यययोरेकाधिकरणत्वम् ।
इसी प्रकार उत्पाद, व्यय तथा धौव्य (स्थिरता ) खरूप होनेसे आकाश भी नित्य और अनित्य, इन दोनों धर्मोंका ही धारक है। तथाहि-'अवकाशको देनेवाला आकाश है' इस वचनसे 'आकाशके भीतर रहनेवाले जो जीव तथा पुद्गल है, उनको IN स्थान देकर, उनका उपकार करना ' यही आकाशका लक्षण है । और जब उसमें रहनेवाले जीव तथा पुद्गल किसी दूसरेकी
प्रेरणासे अथवा अपने खभावसे एक आकाशके प्रदेशसे दूसरे आकाशके प्रदेशमें गमन करते है, तब उस आकाशका उन रहनेवाले जीव और पुद्गलोंके साथ एक प्रदेशमें तो विभाग ( वियोग ) होता है । और दूसरे प्रदेशमें सयोग होता है। भावार्थ-लोकाकाश असख्यात प्रदेशी है, इसलिये जब इसके एक प्रदेशसे दूसरे प्रदेशमें जीव पुद्गल जाते है, तब आकाशके
१ उपकारः । २ पुरुपशक्तितः । ३ स्वभावतः । ४ प्राप्तिपूर्विकाऽग्राप्तिर्विभागः । ५ अप्राप्तिपूर्विका प्राप्ति सयोग. । ६ उभयथा भेदो वस्तूनां लक्षणभेदात्कारणभेदाचेति । अयमेव हि घटपटयोआंदो यजलाहरणादिशीतत्राणादिविरुद्धधर्माध्यासः ॥ अयमेव हि भेदहेतुर्वा यन्मूत्पिण्डादितन्वादिकारणभेद ।
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