________________
रूपवाला है, वैसे ही स्पर्शवाला भी है । और जो तमको पौद्गलिक न माननेके लिये वादियोंने “ अनिविडावयवत्त्व ( कठोर अवयवपना न होना) १ अप्रतिघातित्व (किसीसे रुकनेवाला न होना)२ अनुद्भूतस्पर्श विशेषत्व (इंद्रियोंसे ग्रहण करने योग्य | | किसी स्पर्शवाला न होना) ३ अप्रतीयमानखंडावयविद्रव्यप्रविभागित्व ( खंडित अवयवीरूप द्रव्यके विभागकी प्रतीतिका न होना) ४ इत्यादि साधन दिये है " इनका प्रदीपकी प्रभाके दृष्टान्तसे खंडन कर देना चाहिये। क्योंकि, तुल्ययोगक्षेम है। भावार्थ-जैनी तो तमको पुद्गलका पर्याय मानते है और वैशेषिक कहते हैं कि, तम पौद्गलिक नहीं है । क्योंकि, “प्रथम तो जो पौद्गलिक होता है, उसके अवयव लोह वगैरहके समान कठोर होते है। और तमके अवयव कठोर नहीं है । दूसरे || पौद्गलिक पदार्थ किसीके आड़े आजानेसे रुक जाता है । और तम किसीसे रुकता नहीं है । तीसरे पौद्गलिक पदार्थका स्पष्ट al रीतिसे स्पर्श होता है। और तमका स्पर्श नहीं होता है । चोथे पौद्गलिक पदार्थके अवयवीके खंड भी होते है । जैसे, कि, वस्त्र आदिके खंड होते है । परन्तु तमके खंड ( टुकड़े ) नहीं होते है ।" इनका खंडन जैनी इस प्रकार करते है कि, तुमने जो
दीपककी प्रभाको पौद्गलिक मानी है, उसमें भी जो गुण तममें नहीं है वे नहीं है । इसलिये जैसे तुमने प्रदीपकी प्रभाको पौद्गलिक AVM मानी है, उसी प्रकार तुमको तम भी पौद्गलिक मानना चाहिये ।
न च वाच्यं तैजसाः परमाणवः कथं तमस्त्वेन परिणमन्त इति । पुद्गलानां तत्तत्सामग्रीसहकृतानां विसदृशकार्योत्पादकत्वस्यापि दर्शनात् । दृष्टो ह्याट्टैन्धनसंयोगवशाभास्वररूपस्यापि वढेरभास्वररूपधूमरूपकार्योत्पादः। इति सिद्धो नित्यानित्यः प्रदीपः । यदापि निर्वाणादर्वाग् देदीप्यमानो दीपस्तदापि नवनवपर्यायोत्पादविनाशभाक्त्वात् प्रदीपत्वान्वयाच्च नित्यानित्य एव ।
और 'तेजके परमाणु तम रूप कैसे परिणम गये ? अर्थात् अंधकार रूप कैसे हो गये ? ' ऐसी शंका न करनी चाहिये । क्योंकि, उन उन सामग्रियों सहित जो पुद्गल है, उनके असमान कार्यकी उत्पत्ति भी देखते है । अर्थात् सहकारी कारणोंके |
मिलनेपर पुद्गलोंसे विसदृश कार्य भी उत्पन्न होते है । यह नियम नहीं है कि, तेजके परमाणुओंसे तेजरूप ही दूसरा कार्य हो । 'INI क्योंकि, गीले इंधनके संयोगके वशसे भाखर ( प्रकाशमान ) स्वरूपका धारक जो अग्नि है, उससे अभाखर ( कांति रहित )
S