________________
|| इयं च सप्तभङ्गी प्रतिभङ्गं सकलादेशस्वभावा विकलादेशस्वभावा च । तत्र सकलादेशः प्रमाणवाक्यम् । तल्लक्षणं चेदम् । प्रमाणप्रतिपन्नानन्तधात्मकवस्तुनः कालादिभिरभेदवृत्तिप्राधान्यादभेदोपचाराद्वा यौगपद्येन प्रतिपादकं वचः सकलादेशः । अस्यार्थः-कालादिभिरष्टाभिः कृत्वा यदभेदवृत्तेधर्मधर्मिणोरपृथग्भावस्य प्राधान्यं तस्मात्कालादिभिर्भिन्नात्मनामपि धर्मधर्मिणामभेदाध्यारोपाद्वा समकालमभिधायकं वाक्यं सकलादेशः। तद्विपरीतस्तु विकलादेशो नयवाक्यमित्यर्थः । अयमाशयः। यौगपद्येनाऽशेषधर्मात्मकं वस्तु कालादिभिरभेदप्राधान्यवृत्त्याऽभेदोपचारेण वा प्रतिपादयति सकलादेशः तस्य प्रमाणाधीनत्वात् । विकलादेशस्तु क्रमेण भेदोपचाराद्भेदप्रा
धान्याद्वा तदभिधत्ते तस्य नयात्मकत्वात् । al प्रत्येक सप्तभंगीके प्रत्येक भंगमें कभी सकलादेश खभाव पाया जाता है और कभी विकलादेशरूप स्वभाव पाया जाता है
प्रमाणरूप ज्ञानके सूचक वाक्यको सकलादेश कहते हैं और नयरूप ज्ञानके सूचक वाक्यको विकलादेश कहते हैं। प्रमाणरूप ज्ञानसे जाने हुए अनंतधर्मस्वरूप वस्तुको कालादिक आठ निमित्तोंकी अपेक्षासे अथवा अभिन्न भावके संकल्पकी अपेक्षा लेकर एकसाथ कहनेवाला जो वचन हो, जैसे अमुक वस्तु अनंत धर्मात्मक है, उसीको प्रमाणरूप वचन अथवा सकलादेश कहते है । सारांश | यह है कि; वस्तुमें जितने धर्म होते है वे सभी कालादिक आठ निमित्तोंकी अपेक्षा अभिन्न समझे जाते है। सो उन संपूर्ण धर्मो में | तथा उनके धर्मियोंमें परस्पर कालादिकी अपेक्षा अभेद मानकर अभेद भावको प्रधानकर अथवा कालादिसे जो धर्मधर्मी परस्पर अभिन्न | हो रहे है उनमें अभेद दृष्टिका ही आरोपण प्रधान करके संपूर्ण धर्मधर्मी के समूहको जो वचन एक समयमें कहै उसको सकलादेश कहते है। और जो लक्षण प्रयोजनादिक निमित्तोंकी अपेक्षा लेकर वस्तुके धर्मधर्मियोंको भिन्न भिन्न कहनेवाला वाक्य होता है उसको विकलादेश अथवा नयवाक्य कहते है । भावार्थ-सकलादेश तो कालादिकृत अभेदभाव लेकर अथवा
भेदरूप उपचार कर एक ही समयमें बस्तुके संपूर्ण धर्मोको एकरूप प्रतिपादन करता है। क्योंकि वह सकलादेशरूप वस्तु प्रमाणज्ञानका ही विषय है । और जो विकलादेश है वह भेद दृष्टिका आरोपण करके अथवा भेदभावकी प्रधानता मानकर क्रमसे एक एक धर्मको लेकर वस्तुखरूपका कथन भिन्नरूप करता है। क्योंकि; विकलादेश वस्तु नयाधीन है। प्रमाणज्ञानतो युगपत् अनंतो