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________________ रा..शा. स्याद्वादम. ॥१४४॥ धू सत्त्वमपेक्षते" इत्यादिवचनात् । अप्रमाणकश्च शून्यवादाभ्युपगमः कथमिव प्रेक्षावतामुपादेयो भविष्यति? प्रेक्षा वत्त्वव्याहतिप्रसङ्गात् । अथ चेत्स्वपक्षसंसिद्धये किमपि प्रमाणमयमङ्गीकुरुते तत्रायमुपालम्भः-कुप्येदित्यादि। प्रमाणं प्रत्यक्षाद्यन्यतमत्स्पृशते आश्रयमाणाय प्रकरणादस्मै शून्यवादिने कृतान्तः तत्सिद्धान्तः कुप्येकोपं कुर्यात् । सिद्धान्तबाधः स्यादित्यर्थः । यथा किल सेवकस्य विरुद्धवृत्त्या कुपितो नृपतिः सर्वस्वमपहरति एवं तत्सिद्धान्तोऽपि शून्यवादविरुद्धं प्रमाणव्यवहारमङ्गीकुर्वाणस्य तस्य सर्वस्वभूतं सम्यग्वादित्वमपहरति । ___व्याख्यार्थ-शून्यवादी प्रत्यक्षादि प्रमाणका आश्रय विना लिये अपने माने हुए शून्यवादकी सिद्धि करनेकी प्रशंसाको नही । १ पासकता है । किस प्रकार ? जिस प्रकार अन्यवादी अपने सिद्धांतोंका मंडन कर प्रशंसा पाते हैं । यह दृष्टान्त प्रतिष्ठा न पानेवाले शून्यवादीकी अपेक्षा उलटा है । अर्थात्-अन्यवादी अपने सिद्धांतोको प्रमाणद्वारा सिद्धकर जैसी प्रशंसा पासकते हैं तैसी प्रशंसा यह शून्यवादी जबतक प्रमाणका आश्रय नही लैगा तबतक कभी नही पासकता है । क्योंकि, इसके मतमें प्रमाण की प्रमेयादिकका व्यवहार मानना ही जब झूठा बताया है तो शून्यवादकी सिद्धि कैसे होसकती है ? शून्यवादियोंके सिद्धान्तमें । । ऐसा कहा भी है कि "केवल बुद्धिमें यह धर्म है, यह धर्मी है इत्यादि कल्पना करनेमात्रसे ही यह संपूर्ण अनुमान अनुमेया दिका व्यवहार चलता है। किंतु किसी बाह्य पदार्थके होने न होनेकी अपेक्षा नहीं करता है"। इस कथनके अनुसार जिस शून्य६ वादकी सचाई किसी प्रमाणसे निश्चित ही नही होसकती है उस शून्यवादका आदर बुद्धिमानोंके पास किस प्रकार होसकता है ? • कदाचित् विना परीक्षा किये ही योग्य अयोग्यका विचार न करता हुआ जो कोई उसका ग्रहण करै तो वह मूर्ख समझना चाहिये। ६ यदि कदाचित् शून्यवादी अपना शून्यवाद सिद्ध करनेके अभिप्रायसे किसी प्रमाणको खीकार करै तो उसके ऊपर आगे कहा १. हुआ दोष आपड़ता है। वह दोष यह है कि प्रत्यक्षादि किसी प्रमाणका आश्रय लेते हुए शून्यवादीके ऊपर उसीका माना हुआ सिद्धान्त कोप करने लगेगा । अर्थात् शून्यवादपनेमें बाधा आजायगी । जिस प्रकार सेवकके विरुद्ध आचरणसे कुपित हुआ राजा सेवकका सर्वख हरलेता है उसी प्रकार शून्यवादरूपी सिद्धान्त शून्यवादके विरुद्ध प्रमाणादि आचरणको खीकार करते हुए। शून्यवादीको देखकर उस शून्यवादीका सर्वख हरलेगा । शून्यवादका भलेप्रकार निरूपण करना ही शून्यवादीका सर्वख है। ॥१४४॥
SR No.010452
Book TitleRaichandra Jain Shastra Mala Syadwad Manjiri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParamshrut Prabhavak Mandal
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1910
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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