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साद्वादम.
॥१३२॥
श्चित है परंतु उस जलज्ञानको पैदा करनेवाला जल है ही नहीं। यदि कहाजाय कि वह ज्ञान भ्रमरूप है तो भ्रमात्मक है या राज-शा. सच्चा है ऐसा विचार तो पीछेसे स्थिर होकर करलेना । सवसे प्रथम तो यह खीकार करना चाहिये कि ज्ञान पदार्थके विना भी । होसकता है। यदि कहो कि जहां ज्ञान होता है वहां कुछ नकुछ पदार्थ रहता ही है इसलिये ज्ञानका जनक पदार्थ ही है परंतु यह कहना भी ठीक नहीं है । क्योंकि जहां ज्ञान होता है वहां कुछ नकुछ पदार्थ रहता ही है इतने मात्रसे यह सिद्ध नहीं । होसकता है कि पदार्थ ही ज्ञानका जनक है। किंतु जहां पदार्थ न हो वहां ज्ञान भी न हो ऐसा नियम यदि मिलै तो यह स्वीकार
र सकते है कि ज्ञानका जनक पदार्थ ही है । परंतु यह (व्यतिरेकरूप) नियम तो सिद्धही नहीं होता है ऐसा युक्तिपूर्वक अभी कहचुके हैं। ____ योगिनां चाऽतीताऽनागतार्थग्रहणे किमर्थस्य निमित्तत्वं? तयोरसत्त्वात् " ण णिहाणगया भग्गा पुंजो णत्थि अणागए। णिव्वुया व चिट्ठति आरग्गे सरिसोवमा (संस्कृतच्छाया-न निधानगता भग्नाः पुञ्जो नास्ति अनागतस्य। निर्वृताः नैव तिष्ठन्ति आराग्रे सर्पपोपमाः)" इति वचनात् । निमित्तत्वे चार्थक्रियाकारित्वेन सत्त्वादतीतानागतत्वक्षतिः । न च प्रकाश्यादात्मलाभ एव प्रकाशकस्य प्रकाशकत्वं प्रदीपादेर्घटादिभ्योऽनुत्पन्नस्यापि तत्प्रकाशकत्वात् । जनकस्यैव च ग्राह्यत्वाऽभ्युपगमे स्मृत्यादेः प्रमाणस्याऽप्रामाण्यप्रसङ्गस्तस्यार्थाऽजन्यत्वात् । न ) च स्मृतिने प्रमाणम्; अनुमानप्रमाणप्राणभूतत्वातः साध्यसाधनसम्बन्धस्मरणपूर्वकत्वात्तस्य ।
योगियोंके ज्ञानमें अतीत और आगामी पदार्थ भी झलकते है परंतु उस समय वे पदार्थ ही यदि नहीं है तो उस ज्ञानमें ५ निमित्तरूप कैसे होसकते है ? क्योंकि, ऐसा कहा भी है " जो पदार्थ नष्ट होगये वे किसी भंडारमें जमा नहीं है तथा जो अभी
उत्पन्न ही नहीं हुए ऐसे आगामी होनेवाले पदार्थोंका भी कहीं ढेर नहीं लगा है । जो उत्पन्न होते हैं वे सूईकी अनीपर रक्खी हुई सरसोके समान चिरकालकेलिये ठहर नहीं सकते है"। और यदि अतीत तथा आगामी पदार्थ भी ज्ञानके जनक माने जाय । तो आवश्यकीय क्रियाके जनक होनेसे वे भी विद्यमान ही है ऐसा मानना चाहिये; न कि अतीत तथा आगामी। क्योंकि जब कारण
॥१३२। कारणके न रहनेपर कार्यका न उपजना इस नियमको व्यतिरेक कहते हैं। कार्यके होते हुए कारणका नियमसे उपस्थित रहना इस नियमको अन्वय कहते हैं।