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स्याद्वादमं.
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समय मरण होना संभव है। आयुके अंतसमय ही संपूर्ण आयुकर्मके दलों ( हिस्सो ) का क्षय होनेसे उसी समय मरण कहना चाहिये यह कहना भी ठीक नही है। क्योंकि; उस अतअवस्थाके समय भी उनका नाश प्रत्यक्ष तो है नहीं; और उस समय क्षय भी आयुके उन्ही हिस्सोंका होता है जो प्रतिसमय क्षय होते होते उस समयतक अवशिष्ट रहजाते हैं; न कि उसी समय सपूर्ण आयुके भागोंका । इस कथन के द्वारा गर्भसे लेकर प्रत्येक समय मरण होना भी सिद्ध होता है । इसलिये अधिक कहना व्यर्थ है ।
अथवाऽपरथा व्याख्या । सौगतानां किलार्थेन ज्ञानं जन्यते । तच्च ज्ञानं तमेव स्वोत्पादकमर्थ गृह्णातीति "नाSकारणं विषयः” इति वचनात् । ततश्चार्थः कारणं ज्ञानं च कार्यमिति । एतच्च न चारु यतो यस्मिन् क्षणेऽर्थस्य स्वरूपसत्ता तस्मिन्नद्यापि ज्ञानं नोत्पद्यते; तस्य तदा स्वोत्पत्तिमात्रव्यग्रत्वात् । यत्र च क्षणे ज्ञानं समुत्पन्नं तत्रार्थोऽतीतः । पूर्वापरकालभावनियतश्च कार्यकारणभावः । क्षणातिरिक्तं चावस्थानं नास्ति । ततः कथं ज्ञानस्योत्पत्तिः ? कारणस्य विलीनत्वात् । तद्विलये च ज्ञानस्य निर्विषयताऽनुपज्यते; कारणस्यैव युष्मन्मते तद्विपयत्वात् । निर्विषयं च ज्ञानमप्रमाणमेवाकाशकेशज्ञानवत् । ज्ञानसहभाविनश्चार्थक्षणस्य न ग्राह्यत्वं तस्याऽकारणत्वात् । अत आह “न तुल्यकालः" इत्यादि । ज्ञानार्थयोः फलहेतुभावः कार्यकारणभावस्तुल्यकालो न घटते; ज्ञानसहभाविनोऽर्थक्षणस्य ज्ञानाऽनुत्पादकत्वात्; युगपद्भाविनोः कार्यकारणभावाऽयोगात् । अथ प्राचोऽर्थक्षणस्य ज्ञानोत्पादकत्वं भविष्यति तन्न; यत आह " हेतौ" इत्यादि । हेतावर्थरूपे ज्ञानकारणे विलीने क्षणिकत्वान्निरन्वयं विनष्टे न फलस्य ज्ञानलक्षणकार्यस्य भाव आत्मलाभः स्यात् । जनकस्यार्थक्षणस्यातीतत्वान्निर्मूलमेव ज्ञानोत्थानं स्यात् ।
अब दूसरे प्रकारसे इसीकी व्याख्या करते हैं । बुद्धमतावलंबियोंने पदार्थसे ज्ञानकी उत्पत्ति मानी है और वह ज्ञान अपने उत्पन्न करनेवाले पदार्थको ही जान सकता है ऐसा माना है। क्योंकि " ज्ञानको उत्पन्न करनेवाला ही ज्ञानका विषय होता है " ऐसा उनके शास्त्रका वचन है । इसलिये पदार्थ तो कारण और ज्ञान कार्य हुआ । परंतु यह मानना अच्छा नही है । क्योंकि; जिस समय पदार्थका स्वरूप विद्यमान है उस समय के अंततक भी ज्ञान नहीं उपजता है । सो भी क्योंकि; उस समय वह पदार्थ अपनी उत्पत्ति होनेमें ही लगा रहता है। और जिस ( दूसरे ) समय ज्ञान उत्पन्न होता है तब पदार्थ नष्ट होजाता है ( क्योंकि; प्रत्येक पदार्थ क्षणध्वंसी है ) । क्योंकि, कार्यकारणभावका यही नियम है कि क्रमसे पूर्वोत्तर कालमें होवें । और बौद्धमतमें
रा. जै. शा.
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