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यहांपर यह आत्माके गुणोंकी प्राप्ति न होनेरूप हेतु दिया है; सो असिद्ध नहीं है । क्योंकि; वादी (वैशेषिक ) तथा प्रतिवादी (जैनी) इन दोनोंने ही आत्माके बुद्धि आदि गुणोंको शरीरसे भिन्न स्थानमें नही माने है। सो ही श्रीधरभट्ट कहता है कि:'यद्यपि आत्मा सर्वव्यापी है। तथापि उस आत्माके ज्ञाता ( जाननेवाला) पना अपने शरीरके प्रदेशोंम ही है। दूसरे स्थानोंमें नहीं है। क्योंकि शरीर जो है सो उपभोगका स्थान है । यदि शरीर उपभोगका स्थान न हो तो शरीर व्यर्थ हो जावे ।। भावार्थ-आत्माको जो शरीर मिला है, वह उपभोगके अर्थ है, इसकारण आत्मा शरीरमें रहकर ही पदार्थोंको जानता है । इस कथनसे श्रीधरभट्टने प्रकट किया है कि; आत्माके बुद्धि आदि गुण शरीरसे बाहर नहीं रहते है, इस कारण हमने जो हेतु दिया है, वह असिद्ध नहीं है।
अथास्त्यदृष्टमात्मनो विशेषगुणस्तच्च सर्वोत्पत्तिमतां निमित्तं सर्वव्यापकं च । कथमितरथा द्वीपान्तरादिष्वपि प्रतिनियतदेशवर्तिपुरुषोपभोग्यानि कनकरत्नचन्दनाङ्गनादीनि तेनोत्पाद्यन्ते। गुणश्च गुणिनं विहाय न वर्तते।अतोऽ हनुमीयते सर्वगत आत्मेति । नैवम् । अदृष्टस्य सर्वगतत्वसाधने प्रमाणाऽभावात् । अथास्त्येव प्रमाणं वन्हेरूद्धज्व
लनं वायोस्तिर्यकपवनं चादृष्टकारितमिति चेत-न तयोस्तत्स्वभावत्वादेव तत्सिद्धेर्दहनस्य दहनशक्तिवत । साप्य-IM ला दृष्टकारिता चेत्तर्हि जगत्रयवैचित्रीसूत्रणेऽपि तदेव सूत्रधारायतां किमीश्वरकल्पनया। तन्नायमसिद्धो हेतुः। न
चानकान्तिकः । साध्यसाधनयोर्व्याप्तिग्रहणेन व्यभिचाराऽभावात् । नापि विरुद्धः । अत्यन्तं विपक्षव्यावृत्तत्वात् । आत्मगुणाश्च बुद्ध्यादयः शरीर एवोपलभ्यन्ते ततो गुणिनापि तत्रैव भाव्यम् । इति सिद्धः कायप्रमाण आत्मा ।
शंका-आत्माके अदृष्टनामक एक विशेषगुण है [ बुद्धि आदि नव विशेष गुणोंमें जो धर्म और अधर्म नामक गुण है, वे दोनों अदृष्ट कहलाते है ] और वह अदृष्ट सब उत्पन्न होनेवालोंका निमित्त है अर्थात् जो संसारमें पदार्थ उत्पन्न होते है, उन सबके उत्पन्न होनेमें अदृष्ट ही कारण है, तथा वह अदृष्ट सर्वव्यापक भी है । क्योंकि; यदि वह अदृष्ट सर्वव्यापक न होवे तो || एक नियतस्थान ( मुकर्रर जगह ) में रहनेवाले पुरुषके भोगने योग्य जो सुवर्ण, रन, चन्दन, तथा स्त्री आदि पदार्थ है; उनको
अन्य अन्य द्वीपोंमें भी कैसे उत्पन्न करता है । भावार्थ-एक स्थानमें रहनेवाले पुरुषके भोगनेके लिये जिस द्वीपमें वह पुरुष रहता या है, उस द्वीपसे दूसरे द्वीपोंमें भी वह अदृष्ट सुवर्ण आदि पदार्थीको उत्पन्न करता है। इससे जाना जाता है कि; अदृष्ट सर्वव्यापी all
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