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________________ श्रीपञ्चास्तिकायसमयसारः । आगे आकाशके गतिस्थितिका कारण गुण नहीं सो संक्षेपसे बताते हैं । तमा धम्माधम्मा गमणहिदि कारणाणि णागासं । इदि जिणवरेहिं भणिदं लोगसहावं सुणताणं ॥ १५ ॥ संस्कृतछाया. तस्माद्धाधौं गमनस्थितिकारणे नाकाशं । इति जिनवरैः भणितं लोकस्वभावं शृण्वन्ताम् ॥ ९५ ।। पदार्थ-[तस्मात् तिसकारणसें [धमाधम्र्मों ] धर्म अधर्म द्रव्य [गमनस्थितिकारणे] गमन और स्थितिको निमित्त कारण हैं [आकाशं ] आकाश गमनस्थितिको कारण [न] नहीं है [इति] इसप्रकार [जिनवरैः] जिनेश्वर वीतराग सर्वज्ञने [लोकखभावं] लोकके स्वभावको [शृण्वतां] सुननेवाले जो जीव हैं तिनको [भणितं कहा है। आगे धर्म अधर्म आकाश ये तीनों ही द्रव्य एक क्षेत्रावगाहकर एक है परन्तु निजस्वरूपसे तीनों पृथक् पृथक् हैं ऐसा कहते हैं । धम्माधम्मागासा अपुधभूदा समाणपरिमाणा। पुधगुवलडिविसेसा करंति एगत्तमत्तत्तं ॥ ९६ ॥ संस्कृतछाया. धर्माधर्माकाशान्यपृथग्भूतानि समानपरिमाणानि । . पृथगुपलब्धिविशेषाणि कुर्वन्त्येकत्वमन्यत्वं ॥ ९६ ॥ पदार्थ-[धर्माधर्माकाशानि] धर्म अधर्म और लोकाकाश ये तीन द्रव्य व्यवहार नयकी अपेक्षा [अपृथग्भूतानि ] एक क्षेत्रावगाही हैं अर्थात् जहां आकाश है तहां ही धर्म अधर्म ये दोनों द्रव्य हैं । कैसे हैं ये तीनो द्रव्य ? [समानपरिमाणानि] बराबर हैं असंख्यात प्रदेश जिनके ऐसे हैं । फिर कैसे हैं? [पृथगुपलब्धविशेषाणि] निश्चयनयकी अपेक्षा भिन्नभिन्न पाये जाते हैं भेद जिनके ऐसे हैं अर्थात् निज स्वभावसे टंकोत्कीर्ण अपनी जुदी जुदी सत्ता लियेहुये हैं अत एव ये तीनों ही द्रव्य [एकत्वं] व्यवहारनयकी अपेक्षा एकक्षेत्रावगाही हैं इस कारण एकभावको और [अन्यत्वं] निश्चयनयकी अपेक्षा ये तीनो अपनी जुदी २ सत्ताके द्वारा भेदभावको [कुर्वन्ति] करते हैं । इसप्रकार इन तीनों द्रव्योंके व्यवहार निश्चय नयसे अनेक विलाश जानने । ___ यह आकाशद्रव्यास्तिकायका व्याख्यान पूर्ण हुवा. आगे द्रव्योंके मूर्त्तत्व अमूर्तत्व चेतनत्व अचेतनत्व इसप्रकार चार भाव दिखाते हैं. आगासकालजीवा धम्माधम्मा य मुत्तिपरिहीणा। मुत्तं पुग्गलद्व्वं जीवो खलु चेदो तेसु ॥ ९७॥
SR No.010451
Book TitleRaichandra Jain Shastra Mala Panchastikaya Samay Sara
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages157
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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