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श्रीपञ्चास्तिकायसमयसारः। भावार्थ-सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र इन तीनोंकी एकता सो मोक्षमार्ग है। पद्रव्य पंचास्तिकाय सप्त तत्त्व नव पदार्थ इनका जो श्रद्धान करना सो सम्यक्त्व वा सम्यग्दर्शन है । द्वादशांगके अर्थका जानना सो सम्यग्ज्ञान है आचारादि ग्रन्थकथित यतिका आचरण सो सम्यक्चारित्र है । यह व्यवहारमोक्षमार्ग जीवपुद्गलके सम्बन्धका कारण पाकर जो पर्याय उत्पन्न हुवा है उसीके आधीन है। और साध्य भिन्न है साधन भिन्न है । साध्य निश्चय मोक्षमार्ग है साधन व्यवहार मोक्षमार्ग है । जैसें स्वर्णमय पाषाणमें दीप्यमान अग्नि जो है सो पाषाण और सोनेको भिन्न २ करती है तैसें ही जीवपुगलकी एकताके भेदका कारण व्यवहार मोक्षमार्ग है । जो जीव सम्यग्दर्शनादिकसे अन्तरंगमें सावधान है उस जीवके सब जगहँ उपरिके शुद्ध गुणस्थानोंमें शुद्धस्वरूपकी वृद्धिसे अतिशय मनोज्ञता है. उन गुणस्थानोंमें थिरताको धारण करै है ऐसा व्यवहार मोक्षमार्ग है । शुद्ध जीवको किसी एक भिन्न साध्यसाधनभावकी सिद्धि है क्योंकि अपने ही उपादान कारणसे स्वयमेव निश्चय मोक्षमार्गकी अपेक्षा शुद्ध भावोंसे परिणमता है वहां यह व्यवहार निमित्तकारणकी अपेक्षा साधन कहा गया है । जैसें सोना यद्यपि अपने शुद्ध पीतादि गुणोंसे प्रत्येक आंचमें शुद्ध चोखी अवस्थाको धरै है तथापि बहिरंग निमित्त कारण अग्नि आदिक वस्तुका प्रयत्न है तैसें ही व्यवहारमोक्षमार्ग है । ___ आगे व्यवहारमोक्षमार्गसे साधिये ऐसा जो निश्चय मोक्षमार्ग, तिसका स्वरूप दिखाया जाता है। णिञ्चयणयेण भणिदो तिहि तेहिं समाहिदो हु जो। अप्पा ण कुणदि किंचिवि अण्णं ण मुयदि सो मोक्खमग्गोत्ति॥१६॥
संस्कृतछाया. निश्चयनयेनभणितस्त्रिभिस्तैः समाहितः खलु यः।
आत्मा न करोति किंचिदप्यन्यन् न मुञ्चति स मोक्षमार्ग इति ।। १६१ ।। पदार्थ-[निश्चयनयेन] निश्चयनयसे [तैः त्रिभिः] उन तीन निश्चय सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्रकर [समाहितः] परमरसीभावसंयुक्त [यः] आत्मा जो यह आत्मा [खलु] निश्चयकर [भणितः] कहा गया है सो यह आत्मा [अन्यत्] अन्य परद्रव्यको [किञ्चिदपि] कुछ भी [न करोति] नहिं करता है [न मुञ्चति] और न आत्मीक स्वभावको छोडता है [सः आत्मा] वह आत्मा [मोक्षमार्गः इति ] मोक्षका मार्गरूप ही है इसप्रकार सर्वज्ञ वीतरागने कहा है। . __भावार्थ-सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्रसे आत्मीकस्वरूपमें सावधान होकर जव आत्मीक स्वभावमें ही निश्चित विचरण करता है तब इसके निश्चय मोक्षमार्ग कहा जाता है जो आपहीसे निश्चय मोक्षमार्ग होय तो व्यवहारसाधन किसलिये कहा ? ऐसी शंकापर