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पुराण और जैन धर्म
शित हुए हैं। उन में से इस समय सिहम दो शिलालेख यहां पर. उद्धत करते हैं । आशा है पाठक उनसे हा बहुत कुछ नतीजा निकाल सकेंग?
नं०२८ (A) भगवतो उसमस वारणे गणे नाडिके कुले...सा (पं) (B) दुक सवायक समिसिनर सादिता एनि
भा०-भगवान् उपभ (ऋपभ) की जय हो सादिता की प्रार्थना पर जो वारणगण के उपदेश, नांदिक कुल ओर शाखा के-धुक की चेली थी
[जिल्द दूमरी पृ० २७६-२७७]
नं०८ (A' मिद्धन म (हा) रा (ज) स्य र (T जा) तिराजन्य देवपुत्रम्य हुबकस्य स ४० (६०१) हेमंतमासे ४ दि १० एतस्यां पूर्वायां को दिये गणे स्यानिकीये कुज अय्य (वेरी) पाण शाखाया वाचस्यार्थ वृद्ध हस्ति (स्य) (B) शिव्यत्य गणिस्य आर्यस्त्र (ण) स्य पुय्यम (न)
(स्य) (व) तकस्य (C) मकत्य कुटुम्बिनी ये दत्ताये-न धर्मो महा भागो गताय प्रीयनाम्भगवानृपम श्रीः
भा०---जय ! प्रसिद्ध राजा महाराजाधिराज देव पुत्र हुवस्क के संवत् ४० (६०१) में हेमंत के चतुर्मास की दशमी को इस उपर लिखी हुई मिति को यह उन्कृष्ट दान वनिता निवासी का........ पानक की स्त्री दत्ताने पूज्य वृद्ध हस्ति आचार्य जो कोत्तियगण, शाकिनीय कुल और आर्यवत्री शाखा में से था उसके शिष्य मान