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पुराण और जैन धर्म “धर्म का प्रवर्तक नहीं हुआ । यही जैन धर्म की सभी शाखाओं का सिद्धान्त है। ___ परन्तु जैनों के इतने कयन मात्र से ही इस विषय का निश्चय नहीं हो सकता, सम्भव है उन्होंने अपने गत को अधिक प्राचीन
और विशेष प्रामाणिक सिद्ध करने के लिये ही अपने आधुनिक ग्रन्थों में ऋपभदेव के साथ अपना सम्बन्ध जोड़ दिया हो एतावन मात्र से भागवत का उक्त कथन मिथ्या नहीं हो सकता इसलिये किसी विशिष्ट प्रमाण की तलाश करनी चाहिये । इस प्रकार की शंकाओं को दूर करने के लिये, जैनों की तरफ से जो अन्य प्रबल प्रमाण पेश किये जाते हैं उनका यहां पर दिग्दर्शन कराना हम
आवश्यक समझते हैं। आशा है कि उससे भागवत पुराण के उक्त लेख पर बहुत कुछ प्रकाश पड़ेगा। [जैन धर्म का ऋषभदेव से सम्बन्ध बतलाने
वाले शिला लेख] भगवान् ऋपभदेव के साथ जैन धर्म का विशिष्ट सम्बन्ध बतलाने वाले अन्यान्य प्रमाणों में से मथुरा के शिला लेख कुछ अधिक विश्वासार्ह प्रतीत होते हैं ये लेख अनुमान दो हजार वर्ष के पुराने बतलाये जाते हैं। इनका प्रादुर्भाव न्वनाम धन्य डाक्टर फुहरर (Fuhrer) के अगाध परिश्रम से हुआ है प्रोफेसर बुलहर (Bulher) ने एपो ग्रेफिया इन्डिका (Lpigraphra Indica) नाम की एक पुस्तक प्रकाशित की है उसको प्रथम और द्वितीय जिल्द में जैन धर्म से सम्बन्ध रखने वाले वहत से शिलालेख प्रका