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वहुव कुछ उहापोह किया है तथापि निश्चित रूप से इनका समय निर्णीत नहीं हो सका। इतना वो निर्विवाद है कि मंत्र ब्राह्मण
और स्मृति आदि में जिन पुराणों का केवल पुराण नाम से-जिकर याता है वे पुराण इन पुराण अन्यों से अवश्य भिन्न है। ये पुराण उन्दी पुराणों के आधार पर लिखे गये हों ऐसा कदाचित् संभव हो सकता है । परन्तु इस विषय में तथ्य क्या है इसका निश्चय ऐतिहासिक विद्वान ही कर सकते हैं हमारा अल्प प्रयास तो केवल इतने के ही लिये है कि इन पुराणों में जैन धर्म के विपय में जो कुछ लिखा है उसका संग्रह करके सभ्य संसार के सामने परामर्श के लिये उपस्थित कर देना इससे उस समय की, समाज की धार्मिक परिस्थितिका सभ्य जनता को अच्छी तरह से परिचय मिल सकता है। इसी उद्देश से हम ने इस निबन्ध को लिखकर पाठकों की सेवा में उपस्थित किया है किसी मत या सम्प्रदाय की वृथा ही निन्दा अथवा प्रशंसा करने का हमारा अभिप्राय न कभी हुआ और न है । केवल वस्तु स्थिति से परिचय करा देना ही हमारा इस निबन्ध के लिखने का उद्देश है।
जितने पुराणों का उल्लेख ऊपर किया है उन सब में जैन-धर्म का जिकर नहीं। जिनमें है उन्ही में से हम ने जैन-धर्म सम्बन्धी वाक्यों का उल्लेख किया है।
हमारा यह विश्वास है कि वर्तमान समय में जैन धर्म विपयिक जो भ्रम फैल रहा है उसका कारण पुराणों में दिये गये जैन-धर्म सम्बन्धी इति वृत्त ही हैं। इसी विषय पर हमने अपने विचार