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जनता के समक्ष रखे हैं। वे अच्छे हैं या बुरे, इसका विचार पाठक स्वयं करें।
बहुत समय से यह निवन्ध लिखा पड़ा था उसके बाद समय की गति के अनुसार बहुत कुछ परिवर्तन भी हो चुका परन्तु हमने इसमें कुछभी परिवर्तन न करके इसे वैसेका वैसाही प्रकाशित करा दिया अन्त में सभ्य पाठकों से हमारा सविनय निवेदन है कि
गच्छतः स्खलनं कापि भवत्येव प्रमादतः । हसंति दुर्जनास्तत्र, समादधति सज्जनाः ॥
इस वाक्य के अनुसार हमारे लिखने अथवा विचार करने में कोई त्रुटि रह गई हो। [जिसका रहना स्वाभाविक है]-तो कृपा करके उसे स्वयं पूर्ण करलेवें।
जैन-धर्म के धार्मिक और सात्विक सिद्धांत अभी अन्धकार में पड़े हुए हैं उनका वास्तविक स्वरूप अभी संसार के सामने बहुत कम आया है। जैन-धर्म के अतिरिक्त उसके प्रतिवादी सम्प्रदाय के अन्यों में जैन धर्म का जिस रूप में वर्णन कहीं कही पर आता है उस पर से जैन-धर्म के सिद्धांतों का निश्चय करना कभी अनुरूप नहीं हो सकता इस लिये जैन-धर्म के सिद्धांतों का निश्चय केवल प्रामाणिक जैन अन्धो से ही करना उचित होगा, अन्यथा, भ्रम का होना अनिवार्य है परन्तु सभ्य संसार अब इस तरफ मुका है वह दिन अव बहुत ही समीप है जब कि जैन-धर्म के सिद्धांतो का वास्तविक स्वरूप उसी के धार्मिक ग्रन्या के अनुसार संसार के