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________________ जाता है । (१) इससे उसकी प्राचीनता निर्विवाद है। परन्तु वर्तमान समय में पुराण नाम से जो ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं वे कितने प्राचीन हैं इसका निर्णय करना कठिन है । यद्यपि कतिपय ऐतिहासिक विद्वानों ने पुराणों के पौर्वापर्य तथा काल निर्णय के लिये - १-(क) ऋचः सामानि छंदासि पुगणं यजुपासह । [अथर्व ११-७-२४] (स) सहती दिगमनुव्यात, नितिहासभ पुगणं च गाथाश नराशसोक्षानुव्यचलन् । [अथर्व कां० १५ अनु० १ मा ६ में० १०-११] (ग) अरेऽम्य महतो भनम्य निश्वसितमेत दृग्वेटो यजुर्वेदः सामवंटो ऽथ गिग्म इतिहास पुराग सियादि [ का १४ ६ त्रा० ६ ० ११] (घ) “सहोवाचावेद भगवोध्येमि यजुर्वेद सामवेदमधर्वग्ण चतुर्थ मिति हासपुराण पचन वेदानां चं" [छा० ३० प्र०७ सनत्कुमार नारद सम्बाद] (४) "अरेम्प महतो भूतस्यनि श्वासिनमंतटग्वेटो यजुर्वेद, सामवंटोऽ धर्वागिरस इतिहास पुगणम् । [२०३० अ०० प्रा० ४ म. १०] (च) स्वाध्याय श्रावयेन पिरे धर्मशागणि चैत्रहि । श्राख्यानानीतिहासाश्च पुराणानि खिलानिच । [मनु० प्र० ३ मो० २३.] (छ) पुगण मानवो धर्म सानो वेदनिमित्सतम् । श्राक्षा सिद्धानिचवारि न हन्तव्यानि हेतुभिः ॥ [म० भा०] इन लेखों से प्रतीत होता है कि इन ग्रन्थों के निर्माण कान्त में पुराण नाम के कोई ग्रन्थ अवश्य विद्यमान रहे होंगे। परन्तु उन नाम और संख्या तथा परिमाण का कुछ पता नहीं चलता।
SR No.010448
Book TitlePuran aur Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Sharma
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1927
Total Pages117
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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