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________________ लोभी, स्तब्ध गतिहीन अथवा कठोरह्दयी और धीरोद्धत प्रतिनायक कहलाता है। जैसे राम का प्रतिनायक रावण और युधिष्ठिर का प्रतिनायक दुर्योधन है। अन्य सहायकपात्र : उक्त के अतिरिक्त प्रधान नायक के सहायक अन्य पुरुष पात्र भी होते हैं। इनमें से जैनाचार्यों ने विदूषक, शंकार, विट व नर्मसचिव का उल्लेख किया है 1 विदूषक : नाटकादि में प्रधान नायक के मनोरंजन हेतु विविध प्रसंगो में अपने वेशभूषा, हाव-भाव अथवा भाषा वैचित्र्य के द्वारा जो हास्य उपस्थित करता है वह विदूषक कहलाता है। आ. धनंजय के अनुसार नाटकादि मैं हास्य को उत्पन्न करने वाला विदूषक है।' आ. रामचन्द्रगुणचन्द्र का कथन है कि विदूषक राजा के हास्य के लिए होता है। इसका हास्य अंग, वेशभूषा व वचनों के भेद से तीन प्रकार का होता है। 2 आ. वाग्भट द्वितीय के अनुसार मनोरंजन करने वाला विदूषक कहलाता है। 3 इसप्रकार जैनाचार्यों के विदूषक स्वरूप पर धनंजय का प्रभाव दृष्टिगत होता है। शकार : आ. रामचन्द्रगुपचन्द्र के अनुसार विकृत हास्य के निमित्त राजा का नीचजातीय साला "शकार" कहलाता है। " 1. दशरूपक, 2/9 2. 365 हि. नाट्यदर्पण, 4/14 विवृति 3. काव्यानु वाग्भट, पृ. 62 4. हि. नाट्यदर्पण, 4/14 विवृति
SR No.010447
Book TitlePramukh Jainacharyo ka Sanskrit Kavyashastro me Yogadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRashmi Pant
PublisherIlahabad University
Publication Year1992
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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