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________________ 366 विट : दशरूपककार ने विट को एक विद्या में निपुप माना है।' उन्हीं का अनुसरप करते हुए आ. रामचन्द्रगुपचन्द्र ने राजा के उपयोगी नृत्य गीतादि किसी एक के ज्ञाता को विट कहा है।2 आ. वाग्भट द्वितीय ने भी एक विधा में निपुप को विट कहा है। नमसचिव : कुपित स्त्री को प्रसन्न करने वाला नर्मसचिव कहलाता है।* नायिका स्वरूप : काव्य में जो स्थान नायक का होता है वही स्थान नायिका का भी होता है। नायक की भांति नायिका भी सम्पूर्ण कथावस्तु में व्याप्त रहती है। आशय यह है कि काव्य में नायक - नायिका का समान महत्व है। दशरूपककार धनंजय ने नायकगत गुणों से युक्त स्त्री को नायिका कहा है।' उन्हीं का अनुकरण करते हुए आ. हेमचन्द्र ने लिखा है कि नायकगत विनयादि गुणों से युक्त नायिका कहलाती है। आशय यह है कि जिन गुपों से युक्त नायक होता है, उन्हीं से युक्त नायिका भी होती है। 1. दारूपक, 2/9 2. हि. नाट्यदर्पप, 4/14 विवृत्ति 3 काव्यानु. वाग्भट, पृ. 62 4. तत्र कुपित स्त्रीप्रसादको नर्मसचिवः। ____ काव्यानु, वाग्भट, पृ. 62 5. दशरूपक, 2/15 6. काव्यानु. 7/21
SR No.010447
Book TitlePramukh Jainacharyo ka Sanskrit Kavyashastro me Yogadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRashmi Pant
PublisherIlahabad University
Publication Year1992
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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