SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 37
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 25 इसते विदित होता है कि आचार्य हेमचन्द्र ने राजा जय सिंह द्धिराज के सामने ही अर्थात अपनी मृत्यु से लगभग 40-42 वर्ष पूर्व ही रामचन्द्र को अपना उत्तराधिकारी व प्रमुख शिष्य घोषित कर दिया था। आचार्य रामचन्द्र बाल्यकाल से ही प्रतिभा के धनी थे। एक बार राजा जय सिंह सिद्धराज द्वारा अपने पारिषदों से यह पूछे जाने पर कि गर्मी मे दिन लम्बे क्यों हो जाते हैं। लोगों ने भिन्न प्रकार के उत्तर दिए। आचार्य रामचन्द्र से पूछे जाने पर उन्होंने अपनी कवित्वप्रतिभा एवं तत्कालीन सामंती परम्परा के अनुरूप ही उत्तर दिया।' इसी प्रकार किसी अन्य अवसर पर सिद्धराज ने रामचन्द्र से "अपाहिलपट्टन" नगर का तत्काल वर्णन करने को कहा। रामचन्द्र ने तनिक सी देर मे ही पद्य - रचना करदी12 उनकी असा धारप प्रतिमा व कवि-कर्मकुशलता से प्रसन्न होकर जयसिंह सिद्धराज ने रामचन्द्र को 'कविकटारमल्ल' की उपाधि से अलंकृत किया। 1. देव श्री गिरिदुर्गमल्ल! भवतो तिग्जैत्रयात्रोत्सवे, धावदवी रतुरंगनिष्ठुरतुरखुरपक्षमा मण्डलात। वातोद्धतरजो मिलत्सुरसरित्संजातपंकस्थली - दूर्वाचुम्बनचञ्चुरारविह्यास्तेनातिवृद्ध दिनम्।। हिन्दी नाट्यदर्पप भूमिका से उत, पृ. १३ एतस्यात्य पुरस्य पौरवनिताचातुर्यता निर्जिता, मन्ये नाथ! सरस्वती जडतया नीरंवहन्ती स्थिता। कीर्तिस्तम्भमिषोच्चदण्डरूचिरामुत्सृज्य वाहावलीतन्त्रीकां गुरूसिदभपतिसरस्तुम्बी निजां कच्छपीम।। हिन्दी नाट्यदर्पप, भूमिका से उधृत, पृ. १३
SR No.010447
Book TitlePramukh Jainacharyo ka Sanskrit Kavyashastro me Yogadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRashmi Pant
PublisherIlahabad University
Publication Year1992
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy