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________________ रामचन्द्र गुपचन्द्र तंत्कृत साहित्य में आचार्य रामचन्द्र गुणचन्द्र का नामोल्लेख प्रायः साय - साय होता है। जहाँ तक इन विद्वानों के माता - पिता तथा वंश इत्यादि का प्रश्न है, इसके विषय में कोई प्रमाप उपलब्ध नहीं है। "नाट्यदर्पप" के प्रत्येक विवेक की अन्तिम पुष्पिका में प्राप्त उल्लेखानुसार "नाटयदर्पप" रामचन्द्र-गुणचन्द्र के सम्मिलित प्रयास का प्रतिफल है।' काव्यानुशासनकार आचार्य हेमचन्द्र के सम्मान में लिखे गये इसी गन्य के अन्तिम श्लोक से इनके हेमचन्द्र के शिष्य होने की बात स्पष्ट होती है। इसकी पुष्टि रामचन्द्र की अन्य कृतियों में प्राप्त उल्लेखों से भी होती है।' प्रभावकचरितानुसार एक बार राजा जयसिंह हेमचन्द्र के उत्तराधिकारी के दर्शनार्थ हेमचन्द्र के पास गये थे। इस समय हेमचन्द्र ने अपने प्रतिभाशाली शिष्य रामचन्द्र को अपना उत्तराधिकारी बताया था एवं उसी समय यह मी कहा कि उसको में आज के पूर्व ही आपको दिखा चुका हूँ तथा उस समय उत्तने आपकी अपूर्व ढंग से स्तुति भी की थी। 1. इति रामचन्द्रगुपचन्द्रविरचितायां स्वोपज्ञनाट्यदर्पपविवृतौ नाट कनिर्पयः प्रथमो विवेक :11हि . नाट्यदर्पप, पृ. 198 शब्द-प्रमाप-साहित्य-न्दोलक्ष्मवियायिनासा श्रीहेमचन्द्रपादानां प्रसादाय नमो नमः ॥ हि नाट्यदर्पप, पृ. 409 अन्तिम प्रशस्ति, पध। 38क सजणारः दत्त: श्रीमदाचार्यहमचन्द्रस्य शिष्येप रामचन्द्रप विरचित नलविलासा भिधानमाधं रूपकमभिनेतुमादेश : नलविलास, पृ. 18 ४ख श्रीमदाचार्य हेमचन्द्रविष्यस्य प्रबन्धः कर्तुर्महाकवेः रामचन्द्रत्य भयांसः प्रबन्धाः । - निर्भयभीमव्यायोग, पृ. ।
SR No.010447
Book TitlePramukh Jainacharyo ka Sanskrit Kavyashastro me Yogadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRashmi Pant
PublisherIlahabad University
Publication Year1992
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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