SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 38
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 26 महाकवि रामचन्द्र समत्यापूर्ति करने में भी निपुप थे। एक बार काशी से विश्वेश्वर नामक विद्वान् अपहिलपट्टन आर तथा वे आचार्य हेमचन्द्र की सभा में गए। वहां आचार्य हेमचन्द्र को आशीर्वाद देते हुए शलो काई पढ़ा पातु वो हेम! गोपालः कम्बलं दण्डम्वन्। वहां पर हेमचन्द्राचार्य सहित आस - पास की सभी मंडली जैन थी अत: "कृष्प तुम्हारी रक्षा करे" यह बात उतनी रूचिकर नहीं मालूम पड़ी। उस समय कवि रामचन्द्र भी वहां पर उपस्थित थे उन्हें कृष्ण का यह रक्षा करने का गौरव पसन्द नहीं आया उन्होंने तुरन्त ही शेष आधे लोक की पूर्ति इस प्रकार कर दी - षड्दर्शनपशुगामं चारयन पैन गोचरे आचार्य रामचन्द्र की विद्वत्ता का परिचय उनकी स्वलिखित कृतियों में भी मिलता है। "रघुविलास" में उन्होंने अपने को “वियात्रयीचपम् कहा है। इसी प्रकार नाट्यदर्पप विवृति की प्रारंभिक प्रशास्ति में "विषवेदिनः' तथा अंतिम प्रशस्ति में व्याकरप-न्याय तथा साहित्य का ज्ञाता कहा है। 1. नाट्यदर्पप, भूमिका, पृ. 10 2. वही, प्रारंभिक प्रशस्ति ,१ पृ. 7 एवं अंतिम प्रशस्ति 4, पृ. 409
SR No.010447
Book TitlePramukh Jainacharyo ka Sanskrit Kavyashastro me Yogadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRashmi Pant
PublisherIlahabad University
Publication Year1992
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy