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स्त्री मे अनुरक्त तो हो, किन्तु अपनी स्त्री पर भी स्नेह रखता हो वह दक्षिण नायक कहलाता है। जो बहिर्भूत क्रोधादि विकारों से रहित हो तथा अपनी पत्नी का अप्रिय करता हुआ भी प्रिय बोलता हो, वह नायक शठ कहलाता है। और जिसका अपराध प्रकट हो चुका हो तथा अपमानित होने पर भी जो लज्जित न हो, वह धृष्ट नायक कहलाता है। ।
आचार्य हेमचन्द्र के अनुसार प्रमुखतया नायक चार प्रकार के होते हैं-धीरोदात्त, धीरललित, धीरप्रशान्त और धीरोद्धत | 2
818 धीरोदात्त : विनययुक्त (गूढगर्व), स्थिर, धीर, क्षमावान्, आत्मप्रशंसारहित, शक्तिशाली और दृदप्रतिज्ञ धीरोदात्त नायक कहलाता है। 3 जैसेराम आदि।
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धीरललित : ललित कलाओं में असक्त, सुखी, श्रृंगारिक चेष्टाओं वाला, कोमल हृदय वाला और निश्चिन्त रहने वाला धीरललित नायक कहलाता है। 4 जैसे
वत्सराज आदि।
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कहलाता है। 5 जैसे माधव और चारूदत्त ।
धीरशान्त : विनय और शान्त स्वभाव वाला धीरशान्त नायक
1. वाग्भटालंकार, 5/8-10
2. धीरोदात्तल लितशान्तोदुतभेदात् स चतुर्धा ।
4.
काव्यानुशासन, 7/11
3. गूढगर्व: स्थिरो धीरः क्षमावानविकत्थनों महासत्वो दृढव्रतो धीरोदात्तः
वही. 7/12
कलासक्त : सुखी इगारी मुदुर्निश्चिन्तो धीरलालत :
वहीं. 7/13
5 विनयोपशमवान श्रीरखानाः