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________________ 848 धीरोद्धृत: शूरवीर, ईर्ष्यालु, मायावी अर्थात् मन्त्रादि के बल ते अविद्यमान वस्तु का प्रकाशन करने वाला, छलकपट करने वाला, रौद्र और शौर्यादि मद ते युक्त धीरोद्धत नायक कहलाता है। जैसे - परशुराम, रावणादि । इन चार प्रकार के नायकों की पुष्टि हेतु आचार्य हेमचन्द्र ने भरतमुनि की निम्न दो कारिकायें प्रस्तुत की हैं - "देवा धीरोद्धता ज्ञेयाः स्युर्धीरललिता नृपाः । सेनापतिरमात्यश्च धीरोदात्तौ प्रकीर्तितौ ।। धीरप्रशान्ता विज्ञेया ब्राह्मणा वणिजस्तथा । इति चत्वार एवेह नायकाः समुदाहता: ।। 2 359 इसके बाद उपर्युक्त चारों प्रकार के नायक की श्रृंगारिक अवस्थाओं के आधार पर दक्षिण, धृष्ट, अनुकूल और ठ ये चार चार भेद बतलाये गये हैं - - 828 हो गया हो वह धृष्ट नायक कहलाता है। 818 दक्षिण : "ज्येष्ठायामपि सहदयो दक्षिणः" अर्थात कनिष्ठा नायिका मैं अनुरक्त रहते हुये ज्येष्ठण के प्रति भी सह्दयी दक्षिण नायक कहलाता है। धृष्ट : "व्यक्तापराधो धृष्टः " अर्थात् जिसका अपराध स्पष्ट -- 838 अनुकूल : " एकभार्योऽनुकूल:" अर्थात् एक नायिका में अनुरक्त अनुकूल नायक होता है। 1. "शूरो मत्सरी मायी विकत्थनाछद्मवान रौद्रोऽवलिप्तो धीरोदतः । काव्यानु, 7/15 2. वही, वृत्ति, पृ. 411
SR No.010447
Book TitlePramukh Jainacharyo ka Sanskrit Kavyashastro me Yogadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRashmi Pant
PublisherIlahabad University
Publication Year1992
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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