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तेज : “पराधिपक्षेपाचसहनं तेज :"।। अर्थात दूसरे के द्वारा शत्रु द्वारा किए गए अपमान आदि का सहन न करना तेज गप है।
___ आ. रामचन्द्रगुपचन्द्र ने भी उपर्युक्त आठ सात्विक गुपों का ही उल्लेख
किया है।
उपर्युक्त आठ सात्विक गुणों का ही विवेचन भरतमुनि 2 तथा धनंजय' ने भी किया है। इस प्रकार जैनाचार्यों द्वारा प्रतिपादित सात्विक गुपों का विवेचन भी परंपरागत ही है।
दारूपककार ने नायक के भेदों की चर्चा के बाद सात्विक गपों पर विचार किया है और आचार्य हेमचन्द्र ने गुपों एवं सात्विक गुपों की चर्चा करने के बाद नायक के भेदों का प्रतिपादन किया है।
नायक के भेद : जैनाचार्य वाग्भट प्रथम ने नायक के चार भेद माने हैं - अनुकूल, दक्षिप, शठ व कृष्ट। उनके अनुसार जिसका प्रेम नीलवर्ष के समान गाद हो तथा जो अन्य स्त्री मे रत न हो व अनुकल नायक कहलाता है। और अन्य
1. तेजो विलासो मार्य शोभा स्थैर्य गंभीरता। ____औदार्य ललितं चाष्टौ गुणा नेतरि सत्वनाः।।
हि. नाट्यदर्पप 4/8 2. नाट्यशास्त्र, 24/31-39 3 दशरूपक 2/10