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दृष्टान्त, तुल्ययोगिता, विशेषोक्ति, विनोक्ति, भाविक, काव्यलिंग, समाधि, सामान्य और संतृष्टि - इन ग्यारह अलंकारों का आ. वाग्भ्ट द्वितीय ने कोई उल्लेख नहीं किया है तथा अन्यो क्ति, अन्य, अपर, समाहित, पर्व, हेत, लेश, पिहित, अहेतु, मत, उभयन्यास, भाव और आशी: - इन 13 अन्य अलंकारों का उल्लेख किया है।'
1. इन अलंकारो के लथप कमा: इस प्रकार है - उपमेयस्यैवोक्तावन्यप्रतीतिरन्योक्ति :
काव्यान, वाग्भट, पृ. 35 अनेकेषामेका निबन्धस्त्वन्यः।
वही, पृ. पा गुपक्रियायां युगपदभिधानपरः।
वही, पृ. । कार्यमारभमापत्य देवापायसंपत्ति: समी हितस।
वही, पृ. 42 अर्वाचीनत्यार्थस्य पृथगभिधान पूर्वस।
वही, पृ. 43 कार्यकारपयोरमेदो हेतुः।
वही, पृ. 43 कार्यतो गुणदोषविपर्ययो लेशा
वही, पृ. 43 एक्वाधारे यत्रायव्यत्यकेन पिधीयते तत्पिहितमा
वही, पृ. 43 विकारहेतावप्यविकृतिरहेतुः।
वही, पृ. ५ प्रकृतमक्षिप्य वक्ता यदन्यथा मन्यते तन्मतम्।
वही, पृ. सामान्य सामान्येन यत्समध्यंत स उभयन्यासः।
वही, पृ. यत्र प्रतीयमानोऽर्थो वाच्योपयोगी स भावः।
वही, पृ. ५ इष्टार्थस्याशासनमाशी ।