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________________ 343 आ. वाग्भट दितीय ने जो उपमा अलंकार का लक्षप दिया है उसमें उन्नाट का प्रभाव दृष्टिगत होता है।' अर्थान्तरन्यास का लक्षप देते हए उन्होंने सामान्य से विशेष के समर्थन को अर्थान्तरन्यास कहा है - उनका यह लक्षप हेमचन्द्राचार्य का अनुकरप करता है। इसी प्रकार व्याजस्तति, परिवृत्ति, अनुमान, भान्ति, विषम, सम, परितख्या, कारपमाला, इलेष और संकरादि अलंकारों के लक्षपों पर भी आ, हेमचन्द्र का प्रभाव है।' भावदेवसरि ने 52 अर्थालंकारों का उल्लेख किया है - उपमा, उत्पेक्षा, रूपक, जाति, व्यतिरेक, दीपक, आक्षेप, अप्रस्तुतपशेसा, विभावना, अर्थान्तरन्यास, व्याजस्तुति, समाधि, परिवृत्ति, तुल्ययोगिता, श्लेष, वक्रोक्ति, व्याजोक्ति, विनोक्ति, सहोक्ति, पर्यायोक्ति, हेतु, विरोध, असंगति, दृष्टान्त, समासोक्ति, अतिशयोक्ति, अत्युक्ति, भान्ति, स्मृति, सन्देह, अपहुति, विषम, देवक, उत्तर, उदात्त, सार, अन्योन्य, समुच्चय कारपमाला, आयि, यथाप्तख्य, तद्गुप, एकावली, रसवत, पेय, परिसंख्या I. चमत्कारि साम्पमुपमा । - काव्यानु, वाग्म्ट, पृ. 33 तुलनीय - काव्यालंकारसारसंगह, उमट, 1/15, पृ. 280 2. विश्वस्य सामान्येन समर्थनमर्थान्तरन्यासः। सापर्येप वैधयेप च। - काव्यानुशासन - वाग्भट, पृ. 38 3 दटव्य - काव्यानुशासन - वाग्म्ट, पृ. 39-45
SR No.010447
Book TitlePramukh Jainacharyo ka Sanskrit Kavyashastro me Yogadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRashmi Pant
PublisherIlahabad University
Publication Year1992
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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