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________________ 327 विभावना, दीपक, अतिशय, हेतु, पर्यायो क्ति, समा हित, परिवृत्ति, यथासंख्य, विषम, तहोक्ति, विरोध, अवसर, सार, इलेश, समुच्चय, अप्रस्तुतप्रर्शता, एकावली, अनुमान, परिसंख्या, प्रश्नोत्तर और संकर।' इनमें जाति अलंकार स्वभावोक्ति का पर्यायवाची है। आ. वाग्भट प्रथम ने उपमा के - उपमेयोपमा, अनन्वयोपमा, अनेकोपमेयमलोपमा और अनेकोपमानमलोपमा - इन भेदों का उल्लेख किया है। इनमे अनेकोपमेयमलो पमा के अतिरिक्त शेष उपमेयोपमा, अनन्वयोपमा और अनेकोपमानमलोपमा क्रमशः आ. मम्मटादि - सम्मत उपमेयोपमा, अनन्वय व मालोपमा अलंकार आ. वाग्भट प्रथम ने किसी एक आचार्य को आधार नहीं माना है, अपितु जिस आचार्य का जो लक्षप उन्हें सम्पन प्रतीत हुआ है, उसे उन्होंने अपने शब्दों में उल्लिखित किया है। उनका सहोक्ति लक्षप' रूम्यक के सहोक्ति के एक उपभेद "कार्यकारपप्रतिनियमविपर्ययरूपा सहोक्ति' पर आधत है। इसी प्रकार वाग्भट प्रथम के दीपकालंकार पर भरत व - - - - - - - - - - - I. वाग्भटालंकार, 4/2-6 2. वही, 4/54-57 3. सहोक्तिः सा भवेद् यत्र कार्यकारपयोः सह। समुत्पत्तिकथा हेतोर्वक्तुं तज्जन्मशक्तताम।। वाग्भटालंकार, 4/19 ५. दृष्टय , अलंकारसर्वस्व , पृ.298
SR No.010447
Book TitlePramukh Jainacharyo ka Sanskrit Kavyashastro me Yogadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRashmi Pant
PublisherIlahabad University
Publication Year1992
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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