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( 5 ) ससन्देह, (6) रूपक, ( 7 ) अपह्नुत्ति, (8) पलेष (9) समातोक्ति , (10) निदर्शना, (11) अपस्तुत प्रशंसा, (12) अतिशयोक्ति, (13) प्रतिवस्तूपमा, (14) दृष्टान्त, (15) दीपक, (16) तुल्ययोगिता, (17) व्यतिरेक (18) आक्षेप, (19) विभावना, (20) विशेषोक्ति, (21) यथासंख्य, (22) अर्थान्तरन्यास, (23) विरोधाभास, (24) स्वभावो क्ति, (25) व्याजस्तुति, (26) सहोक्ति, (27) विनो क्ति, (28) परिवृत्ति, (29) भाविक, (30) काव्य लिइ.ग, (31) पर्यायोक्ति, (32) उदात्त, (33) समुच्चय, (34) पर्याय, (35) अनुमान, (36) परिकर, (37) व्याजो क्ति, (38) परिसंख्या, (39) 'कारपमाला, (40) अन्योन्य, (41) उत्तर, (42) सूक्ष्म, (43) सार, (५५) असंगति, (45) समाधि, (46) सम, (47) विषम, (48) अधिक, (५१) प्रत्यनीक, (50) मी लित, (51) एकावली, (52) स्मृति, (53) भान्तिमान (54) प्रतीप, (55) सामान्य, (56) विशेष, (57) सद्गुप, (58) अतद्गुप, (59) व्याघात, (60) संसृष्टि और (61) संइ. कर।'
जैनाचार्य वाग्भट प्रथम ने पैतीस अर्थालंकार स्वीकार किए हैंजाति, उपमा, रूपक, प्रतिवस्तूपमा, प्रान्तिमान, आक्षेप, संशय, दृष्टान्तु, व्यतिरेक, अपहनुति, तुल्ययोगिता, उत्प्रेक्षा, अर्थान्तरन्यास, तमासोक्ति,
1. आ. विश्वेश्वरः काव्यप्रकाश, पृ. 441